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धर्म : निजी और वैयक्तिक
नहीं गाता। सौभाग्यशाली हैं वे जिनकी आंखें अब भी तर हो वियोगी होगा पहला कवि! सकती हैं, भीग सकती हैं। उनकी आत्मा के भीगने का अभी -यह वियोग रोया है। उपाय है। तो अगर रोना आता हो तो आने देना, सहयोग करना, आह से उपजा होगा गान! साथ देना, संगी बनना। लड़-लड़कर मत रोना। -और जल्दी ही तुम्हारे आंसुओं से गीत उतरने लगेंगे। झिझक-झिझककर मत रोना। सकुचाना मत। शर्माना मत। मीरा खूब रोयी। इसलिए तो मीरा के गीतों में जो है, वह नहीं तो चूक हो जायेगी।
महाकवियों के गीतों में भी नहीं। मीरा के गीत भाषा और अगर आंसुओं से तुम पूरे बह जाओ तो कुछ कहने को नहीं व्याकरण की दृष्टि से तुकबंदियां हैं। हृदय की दृष्टि से तो वैसे बचता। फिर कोई प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है। फिर कोई गीत कभी-कभार पृथ्वी पर उतरे हैं, किसी दूसरे लोक से आये शास्त्र आवश्यक नहीं है। फिर तुम्हारे आंसू सब कह देंगे—जो हैं। बहुतों ने गीत लिखे हैं, लेकिन जैसे मीरा के गीत हृदय-हृदय नहीं कहा जा सकता वह भी; जो कहा जा सकता है वह तो | में उतरे हैं, वैसे किसी के गीत कभी नहीं उतरे। न तो भाषा, न निश्चित ही। फिर तो तुम्हारे आंसू सब गा देंगे—जो गेय है, छंद-शास्त्र, न काव्य की मात्राओं का कुछ हिसाब है, न संगीत अगेय है, सभी गा देंगे; जो नहीं गाया जा सकता है, अगेय है, का कोई गणित है-पर कुछ और है जो इन सब के पार है। यह वह भी गा देंगे। फिर तो तुम्हारे आंसुओं की धुन में सब प्रगट हो व्यथा मीरा की अपनी नहीं है अब! जैसे मीरा के कंठ से सारी जाएगा। तुमसे ज्यादा ढंग से कह देंगे वे, परमात्मा से क्या मनुष्यता, सारा अस्तित्व अपनी पीड़ा को प्रगट किया है। कहना है!
जब आंसू तुम से मुक्त हो जाते हैं, और सबके हो जाते हैं, तो वियोगी होगा पहला कवि
तुम समाप्त हुए। अब तुम कोई छोटी-मोटी धारा न रहे जो सूख आह से उपजा होगा गान
जाती है। वर्षा, गर्मी में...भर जाती है वर्षा में, वर्षा में बाढ़ आ उमड़कर आंखों से चुपचाप
जाती है, गर्मी में पता भी नहीं चलता कहां खो गई। जब तुम्हारी बही होगी कविता अनजान
व्यथा सबकी व्यथा से जुड़ जाती है, तो तुम सागर हो गए। तब सारा काव्य आंसुओं का है। हंसी से कोई काव्य निर्मित होता तुम्हारे भीतर सिर्फ व्यथा ही नहीं रहती, व्यथा के गीत उठते हैं, है? सारा काव्य आंसुओं का है; क्योंकि हंसी बड़ी उथली है, विरह के गीत उठते हैं। ऊपर-ऊपर है, खोखली है। कोई हंसना आंसुओं की गहराई सारा भक्ति-शास्त्र विरह है, वियोग है। और भक्त ने विरह नहीं छू पाता। हंसना ऊपर-ऊपर लहर की तरह आता है, चला को दुर्भाग्य नहीं माना है, सौभाग्य जाना है। भक्त ने अपनी पीड़ा जाता है। आंसू कहीं गहरे में सघन हो जाते हैं। तो आंसू तो को भी स्वर्णिम माना है। है भी स्वर्णिम, क्योंकि जब सब खो गहराई में उतरने की सुविधा है, सौभाग्य है।
जायेगा, जब कुछ भी न बचेगा, केवल एक प्यास बचेगी; एक और धीरे-धीरे, पहले तो आंसू अपने लिए बहते हैं, फिर आंसू उत्तप्त हृदय बचेगा-तभी उसी क्षण में, उसी परम सौभाग्य के औरों के लिए भी बहने लगते हैं। पहले-पहले तो कारण से क्षण में, उसी धन्यता की घड़ी में परमात्मा का अवतरण होता है। बहते हैं, फिर अकारण बहने लगते हैं। जब अकारण बहने | 'कोई आठ वर्षों से आपको सुनती हूं, पढ़ती हूं; लेकिन सब लगते हैं, तब उनका मजा ही और है।
भूल जाता है, सिर्फ आप ही सामने होते हैं।' अश्रु अपनी ही व्यथा का निर्वसन तन
शभ हो रहा है। मैं क्या कहता है. उसका हिसाब वे रखें जो गीत जग भर के दुखों की आत्मा है।
मुझे नहीं समझ पाते। उनके हाथ कूड़ा-कर्कट पड़ेगा। वे पहले तो अपनी ही पीड़ा से बहते हैं, लेकिन जल्दी ही तुम उच्छिष्ट को इकट्ठा कर लेंगे। जैसे भोजन की टेबल के पाओगे कि तुम्हारी पीड़ा सारी मनुष्यता की पीड़ा है। जल्दी ही | आसपास थोड़े टुकड़े गिर जाते हैं, ऐसे ही शब्द हैं। टुकड़े तुम पाओगे: तुम्हारी पीड़ा सारे अस्तित्व की पीड़ा है। यह तुम | भोजन से गिर गये-रोटी के, साग-सब्जी के, मिष्ठान्न ही नहीं रोए हो, यह परमात्मा से बिछुड़ापन रोया है।
के-ऐसे ही शब्द हैं। क्योंकि जो मैं हूं वह शब्दों में प्रगट नहीं
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