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जिन सूत्र भागः1
न जागा! इतना समय कैसे सोया रहा! कैसे-कैसे दुखस्वप्नों में बड़ा यथार्थ, बड़ा अनुभव-पूरित, अनुभव-गम्य मार्ग है। दबा रहा, फिर भी आंख न खोली!
इसलिए महावीर के वचनों में रहस्यवाद नहीं है। वे कोई 'हा! खेद है कि सुगति का मार्ग न जानने के कारण मैं मूढ़मति | मिस्टिक नहीं हैं। वे किसी धुंधले लोक की, किसी आकाश की भयानक तथा घोर भव वन में चिरकाल तक भ्रमण करता रहा।' बात नहीं कर रहे हैं, वे तुम्हारी बात कर रहे हैं। और जब वे
यहीं श्रमण और ब्राह्मण-संस्कृति के बुनियादी भेद साफ होते तुमसे बात कर रहे हैं, तो उनके मन में ऐसा भाव नहीं है कि तुम हैं। ब्राह्मण-संस्कृति कहती है, राम अवतरित हुए, कृष्ण क्षुद्र...। वे जानते हैं कि वे भी यही थे। वे चकित होते हैं तुम अवतरित हुए। वे भगवान के अवतार हैं। ऊपर से नीचे आये। पर, लेकिन तुम पर क्रोधित नहीं हैं। यह समझने जैसी बात है। वे मनुष्य नहीं हैं, वे भगवान हैं।
उनके मन में तुम्हारी निंदा नहीं है, करुणा है, गहन करुणा है। | महावीर ऊपर से नीचे नहीं आए, नीचे से ऊपर आए। वे उसी आश्चर्य से भरे हैं, लेकिन उस आश्चर्य में तुम पर ही आश्चर्य | जगह से गुजरे जहां से तुम गुजर रहे हो। उन्होंने वही दुख भोगे नहीं है, स्वयं पर भी आश्चर्य है। इसलिए तत्क्षण जैसे ही उन्होंने
जो तुमने भोगे। उन्होंने वही पीड़ाएं जानी जो तुमने जानी हैं। तुम कहा कि अहो! संसार में दुख ही दुख है, फिर भी जीव क्लेश पा उनके लिए अपरिचित नहीं हो। तुम्हारा जो वर्तमान है वह उनका रहे हैं उसके बाद ही वे कहते हैं, 'हा! खेद है कि सुगति का अतीत था। और उनका जो वर्तमान है, वह तुम्हारा भविष्य है। मार्ग न जानने के कारण मैं मूढ़मति भयानक तथा घोर भव-वन उनकी कड़ी तुमसे जुड़ी है।
में चिरकाल तक भ्रमण करता रहा।' वे यह नहीं कह रहे हैं कि इसलिए अगर जैन तीर्थंकरों की भाषा मनष्य के हृदय के बहत तमसे मैं कछ ऊपर हं. पवित्र हं. श्रेष्ठ हं_मैं तम में से हैं। मैं करीब है और जैन तीर्थंकरों और मनुष्यों के बीच कोई तुम्हारी ही भीड़ से आया हूं, मैं अपरिचित, अनजान नहीं। मैं खाई-खंदक नहीं है, तो कारण साफ है। जैन तीर्थंकर उसी जगह कोई परदेशी नहीं। मैं तुम्हारे ही देश का वासी हूं। और जो तुम से आए जहां से तुम गुजर रहे हो। तुम्हारे दुख उन्होंने जाने हैं। भोग रहे हो, वह मैंने भी भोगा है। तुम्हारी मूढ़ता मेरी भी मूढ़ता तुम्हारे कष्ट उन्होंने जाने हैं। तुम्हारा अनुभव उनका अनुभव भी है। तुम्हारा अज्ञान मेरा भी अज्ञान है। है। इसलिए जब कृष्ण कुछ कहते हैं तो अर्जुन और कृष्ण की 'सुगति का मार्ग न जानने के कारण...।' बातचीत में बड़ा अंतराल है। ऐसा लगता है, कृष्ण किसी और सुगति का मार्ग है : ध्यान, विवेक, विचार, जागरूकता, ही जगत की कह रहे हैं, अर्जुन किसी और ही जगत की कह रहा अमूर्छा, अप्रमाद। न जानने के कारणहै-जैसे संवाद हो ही नहीं पाता। राम का महिमापूर्ण चरित्र! रोती है शबनम कली दिलतंग है गुल सीनाचाक लेकिन उसमें महिमा कुछ भी नहीं है, क्योंकि वह ईश्वर का क्या इसी मजमूआ-ए-गम का गुलिस्तां नाम है। चरित्र है।
रोती है शबनम-आंसू हैं शबनम में। आंसू ही शबनम है। लेकिन महावीर का चरित्र महिमापूर्ण है, क्योंकि वह मनुष्य का कली दिलतंग है-कली सिकुड़ी है अपने में, खुल नहीं पाती। चरित्र है। राम भगवान से मनुष्य हो रहे हैं। उन्हें मनुष्यों का क्या | कली दिलतंग है गुल सीनाचाक। फूल का हृदय टूट गया है। पता, कुछ भी पता नहीं है। महावीर मनुष्य से भगवान हुए हैं; पंखुड़ियां बिखरी जा रही हैं। क्या इसी मजमूआ-ए-गम का उन्हें मनुष्यों का रत्ती-रत्ती पता है; उसका दुख, उसकी पीड़ा, गुलिस्तां नाम है। क्या इसीको गुलिस्तां कहें। जहां जन्म भी दुख उसका संकट, उसकी मूढ़ता, अज्ञान, भ्रांतियां, माया-मोह, । है, जहां जीवन भी दुख है, जहां मृत्यु भी दुख है, जहां एक दुख उसका भटकना उन्हें पूरी तरह पता है।
के बाद दूसरे दुख की शृंखला है-इसको जीवन कहें, गुलिस्तां इसलिए महावीर के वचनों की एक वैज्ञानिकता है। कृष्ण के कहें। नहीं, इसमें जीवन जैसा कुछ भी नहीं है। एक गहन स्वप्न वचनों में एक दार्शनिकता है। बड़ी ऊंची हवा ही बात है, है, स्वप्न भी मधुर नहीं। स्वप्न भी दुख-स्वप्न है, नाइटमेयर! आकाश की बात है। लेकिन महावीर के पैर जमीन में अड़े हैं। लेकिन महावीर कहते हैं, क्या करो? अनंत जन्म ऐसे गये, उनका सिर आकाश में उठा है, लेकिन पैर उनके जमीन पर हैं। | क्योंकि सुगति का कोई मार्ग पता न था।
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