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भद्रबाहुसंहित
इस आशय को वराहमिहिर ने निम्न श्लोकों में प्रकट किया है
दिवि भुक्तशुभ फलानां पततां रूपाणि यानि तान्युल्काः । धिष्ण्योरकाश निविद्य त्ताए इति पंचधा
भिन्नाः ॥
- अ० 30, श्लो० 1
भद्रबाहुसंहिता के दूसरे अध्याय के 8, 9वां श्लोक वाराही संहिता के 33वें अध्याय के 3, 4 और 8वें श्लोक के समान हैं । भाव साम्य के साथ अक्षर साम्य भी प्रायः मिलता है । भद्रबाहुसंहिता के तीसरे अध्याय का 5, 9, 16, 18, 19वाँ श्लोक वाराही संहिता के 33वें अध्याय के 9, 10, 12, 15, 16, 18 और 19वें श्लोक से प्रायः मिलते हैं । भाव की दृष्टि से दोनों ग्रन्थों में आश्चर्यजनक समता है ।
अन्तर इतना है कि वाराही संहिता में जहाँ विषय वर्णन में संक्षेप किया है, वहाँ भद्रबाहुसंहिता में विषय का विस्तार है । प्रत्येक विषय को विस्तार के साथ समझाने की चेष्टा की है । फलादेशों में भी कहीं-कहीं अन्तर है, एक बात या परिस्थिति का फलादेश वाराही संहिता से भद्रबाहु संहिता में पृथक् है । कहींकहीं तो यह पृथकता इतनी बढ़ गयी है कि फल विपरीत दिशा ही दिखलाता है।
परिवेष का वर्णन भद्रबाहुसंहिता के चौथे अध्याय में और वाराही संहिता के 34वें अध्याय में है । भद्रबाहु संहिता के इस अध्याय के तीसरे और सोलहवें श्लोक में खण्डित परिवेषों को अनिष्टकारी कहा गया है। चांदी और तेल के समान वर्ग वाले परिवेष सुभिक्ष करनेवाले कहे गये हैं । यह कथन वाराही संहिता के 34वें अध्याय के 4 और 5वें श्लोक से मिलता-जुलता है । परिवेश प्रकरण के 8, 14, 20, 28, 29, 37, 38वाँ श्लोक वाराही संहिता के 34वें अध्याय के 6, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, एवं 37वें श्लोक से मिलते हैं । भाव में पर्याप्त साम्य है। दोनों ग्रन्थों का फलादेश तुल्य है । परिवेष के नक्षत्र तिथियों एवं वर्णों का फलकथन भद्रबाहुसंहिता में नहीं है, किन्तु वाराही संहिता में ये विषय कुछ विस्तृत और व्यवस्थित रूप में वर्णित हैं । प्रकरणों में केवल विस्तार ही नहीं है, विषय का गाम्भीर्य भी है । भद्रबाहुसंहिता के परिवेश अध्याय में विस्तार के साथ पुनरुक्ति भी विद्यमान है ।
भद्रबाहु संहिता का 12वाँ अध्याय मेघ - गर्भलक्षणाध्याय है। इसके चौथे और सातवें श्लोक में बताया है कि सात-सात महीने और सात-सात दिन में गर्भ पूर्ण परिपक्व अवस्था को प्राप्त होता है । वाराही संहिता में (अ० 22 श्लो० 7 ) में 195 दिन कहा गया है । अतः स्थूल रूप से दोनों कथनों में अन्तर मालूम पड़ता है, पर वास्तविक में दोनों कथन एक हैं। भद्रबाहुसंहिता में नाक्षत्र मास ग्रहीत है, जो 27 दिन का होता है, अतः यहां 196 दिन आते हैं । वाराहमिहिर