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भद्रबाहुसंहिता हो तो स्त्रियों का कुभाग्य बढ़ता है। चैत्र नाम के वर्ष में धान्य और जल-वृष्टि विचित्र रूप में होती है तथा सरीसृपों की वृद्धि होती है । वैशाख नामक संवत्सर में राजाओं में मतभेद होता है और जल की अच्छी वर्षा होती है। ज्येष्ठ नामक वर्ष में अच्छी वर्षा होती है और मित्रों में मतभेद बढ़ता है। आषाढ़ नामक वर्ष में जल की कमी होती है, पर कहीं-कहीं अच्छी वर्षा भी होती है। श्रावण नामक वर्ष में दांत वाले जन्तु प्रबल होते हैं। भाद्र नामक संवत्सर में शस्त्रकोप, अग्निभय, मूर्छा आदि फल होते हैं और आश्विन नामक संवत्सर में सरीसृपों का अधिक भय रहता है। वाराही संहिता में यही प्रकरण निम्न प्रकार मिलता है
शुभकृज्जगतः पोषो निवृत्तवराः परस्परं क्षितिपाः । द्वित्रिगुणो धान्याघः पौष्टिककर्मप्रसिद्धिश्च ।। पितृपूजापरिवृद्धिघि हार्द च सर्वभूतानाम् । आरोग्यवृष्टिधान्याघसम्पदो मित्रलाभश्च ।। फाल्गुने वर्षे विद्यात् क्वचित् क्वचित् क्षेमवृद्धिसस्यानि । दौर्भाग्यं प्रमदानां प्रबलाश्चौरा नृपाश्चोग्राः ।। चैत्र मन्दा वृष्टि: प्रियमन्नक्षेममवनिपा मृदयः । वृद्धिस्तु कोशघान्यस्य भवति पीडा च रूपवताम् ॥ वैशाखे धर्मपरा विगतभयाः प्रमुदिताः प्रजाः सनृपाः । यज्ञक्रियाप्रवृत्तिनिष्पत्तिः
सर्वसस्यानाम् ।।
-वा० सं० 8 अ० 5-9 श्लो० अर्थ-पौष नामक वर्ष में जगत् का शुभ होता है, राजा आपस में वैरभाव का त्याग कर देते हैं । अनाज की कीमत दूनी या तिगुनी हो जाती है और पौष्टिक कार्य की वृद्धि होती है। माघ नाम के वर्ष में पित लोगों की पूजा बढ़ती है, सर्व प्राणियों का हार्द होता है; आरोग्य, सुवृष्टि और धान्य का मोल सम रहता है, मित्रलाभ होता है । फल्गुन नाम वाले वर्ष में कहीं-कहीं क्षेम और अन्न की वृद्धि होती है, स्त्रियों का कुभाग्य, चोरों की प्रबलता और राजाओं में उग्रता होती है। चैत्र नाम के वर्ष में साधारण वृष्टि होती है, राजाओं में सन्धि, कोष और धान्य की वृद्धि और रूपवान् व्यक्तियों को पीड़ा होती है। वैशाख नामक वर्ष में राजाप्रजा दोनों ही धर्म में तत्पर रहते हैं, भय शून्य और हर्षित होते है, यज्ञ करते हैं
और समस्त धान्य भलीभांति उत्पन्न होते हैं । (ज्येष्ठ नामक वर्ष में राजा लोग धर्मज्ञ और मेल-मिलाप से रहते हैं। आषाढ़ नामक वर्ष में समस्त धान्य पैदा होते हैं, कहीं-कहीं अनावृष्टि भी रहती है । श्रावण नामक वर्ष में अच्छी फसल पैदा होती है। भाद्रपद नामक वर्ष में लता जातीय समस्त पूर्व धान्य अच्छी तरह पैदा होते है