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भद्रबाहुसंहिता
हो, वे उल्काएँ अनिष्ट सूचक तथा मनुप्य जाति के लिए भयप्रद होती हैं । चमक या प्रकाशवाली छोटी-छोटी उल्काएँ—जिनका स्वरूप धिष्ण्या के समान है, किसी महत्त्वपूर्ण घटना की सूचना देती हैं। तार के समान लम्बी उल्काएँ, जिनका गमन सम्पात विन्दु से भूमण्डल तक एक-सा हो रहा है, बीच में किसी भी प्रकार का विराम नहीं है, वे व्यक्ति के जीवन की गुप्त और महत्त्वपूर्ण बातों को प्रकट करती हैं। तार या लड़ी रूप में रहना उसका व्यक्ति और समाज के जीवन की शृंखला की सूचक है । सूची रूप में पड़ने वाली उल्का देश और राष्ट्र के उत्थान की सूचिका है।
इधर-उधर उठी हुई और विशृखलित उल्काएँ आन्तरिक उपद्रव की सूचिका हैं । जब देश में महान् अशान्ति उत्पन्न होती है, उस समय इस प्रकार की छिट-फुट गिरती पड़ती उल्काएँ दिखलायी पड़ती हैं। उल्काओं का पतन प्रायः प्रतिदिन होता है । पर उनमे इष्टानिष्ट की सूचना अवसर विशेषों पर ही मिलती है।
उल्काओं का फलादेश उनकी बनावट और रूप-रंग पर निर्भर करता है । यदि उल्का फीकी, केवल तारे की तरह जान पड़ती है तो उसे छोटी उल्का या टूटता तारा कहते हैं। यदि उल्का इतनी बड़ी हुई कि उसका अंश पृथ्वी तक पहुंच जाय तो उसे उल्का प्रस्तर कहते हैं और यदि उल्का बड़ी होने पर भी आकाश ही में फटकर चूर-चूर हो जाए तो उसे साधारणतः अग्निपिण्ड कहते हैं । छोटी उल्काएँ महत्त्वपूर्ण नहीं होती हैं, इनके द्वारा किसी खास घटना की सूचना नहीं मिलती है। ये केवल दर्शक व्यक्ति के जीवन के लिए ही उपयोगी सूचना देती हैं। बड़ी-बड़ी उल्काओं का सम्बन्ध राष्ट्र से है, ये राष्ट्र और देश के लिए उपयोगी सूचनाएं देती हैं। यद्यपि आधुनिक विज्ञान उल्का-पतन को मात्र प्रकृतिलीला मानता है, किन्तु प्राचीन ज्योतिषियों ने इनका सम्बन्ध वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के उत्थान-पतन के साथ जोड़ा है।