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भद्रबाहुसंहिता
धर्मस्थानों पर विपत्ति, सत्क्रिया का अभाव, वर्षा की कमी, धान्य की उत्पत्ति में कमी एवं प्रजा में अनेक प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होती हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्य में सूखा पड़ता है, जिससे इन राज्यों की प्रजा को अधिक कष्ट उठाना पड़ता है। उक्त मास में गुरु का राशिपरिवर्तन कलाकारों के लिए मध्यम और योद्धाओं के लिए श्रेष्ठ होता है। आषाढ़ मास में बृहस्पति का राशि परिवर्तन हो तो राज्य वालों को क्लेश, मुख्य मन्त्रियों को शारीरिक कष्ट, ईति-भीति, वर्षा का अवरोध, फसल की क्षति, नये प्रकार की क्रान्ति एवं पूर्वोत्तर प्रदेशों में उत्तम वर्षा होती है। दक्षिण के प्रदेशों में भी उत्तम वर्षा होती है। मलवार में फसल में कुछ कमी रह जाती है। गेहूं, धान, जौ और मक्का की उपज सामान्यतया अच्छी होती है। श्रावण मास में गुरु का राशिपरिवर्तन होने से अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, देश का आर्थिक विकास, फल-फूलों की वृद्धि, नागरिकों में उत्तेजना, क्षेम और आरोग्य फैलता है। भाद्रपद और आश्विन मास में गुरु के राशि परिवर्तन होने से क्षेम, श्री, आयु, आरोग्य एवं धन-धान्य की वृद्धि होती है । समयानुकूल अच्छी वर्षा होती है। जनता को आर्थिक लाभ होता है तथा सभी मिलकर देश के विकास में योगदान करते हैं।
द्वादश राशि स्थित गुरुफल-मेष राशि में बृहस्पति के होने से चैत्र संवत्सर कहलाता है । इसमें खूब वर्षा होती है, सुभिक्ष होता है । वस्त्र, गुड़, तांबा, कपास, मूंगा आदि पदार्थ सस्ते होते हैं। घोड़ों को पीड़ा, महामारी, ब्राह्मणों को कष्ट, तीन महीनों तक जनसाधारण को भी कष्ट होता है। भाद्रपद मास में गेहूं, चावल, उड़द, घी, सस्ते होते हैं, दक्षिण और उत्तर में खण्डवृष्टि होती है । दक्षिणोत्तर प्रदेशों में दुभिक्ष, दो महीने के पश्चात् वर्षा होती है । कार्तिक और मार्गशीर्ष मास में कपास, अन्न, गुड़ महंगा होता है, घी का भाव सस्ता होता है, जूट, पाट का भाव महंगा होता है । पौष मास में रसों का भाव महंगा, अन्न का भाव सस्ता, गुड़घी का भाव कुछ महंगा होता है। एक वर्ष में यदि बृहस्पति तीन राशियों का स्पर्श करे तो अत्यन्त अनिष्ट होता है ।
वृष राशि में गुरु के होने से वैशाख में वर्ष माना जाता है । इस वर्ष में वर्षा अच्छी होती है, फसल भी उत्तम होती है। गेहूं, चावल, मूंग, उड़द, तिल के व्यापार में अधिक लाभ होता है। श्रावण और ज्येष्ठ इन दो महीनों में सभी वस्तुएं लाभप्रद होती हैं। इन दोनों महीनों में वस्तुएं खरीदकर रखने से अधिक लाभ होता है। कार्तिक, माघ और वैशाख में घी का भाव तेज होता है। आषाढ़, श्रावण और आश्विन में अच्छी वर्षा होती है, भादों के महीने में वर्षा का अभाव रहता है। रोग उत्पत्ति इस वर्ष में अधिक होती है। पूर्व प्रदेशों में मलेरिया, चेचक, निमोनिया, हैजा आदि रोग सामूहिक रूप से फैलते हैं। पश्चिम के प्रदेशों में सूखा होने से बुखार का अधिक प्रसार होता है। आषाढ़ मास में बीजवाले अनाज महंगे