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अष्टादशोऽध्यायः
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कृत्तिका में लाल वर्ण का बुध हो तो अग्नि प्रकोप करने वाला, रोहिणी में हो तो क्षय करने वाला होता है। और यदि मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा इन नक्षत्रों में कलुषित बुध हो तो पितर और विहंगमों तथा धान्य को लाभ होता है ।।26-27॥
बुधो विवर्णो मध्येन विशाखां यदि गच्छति ।
ब्रह्म-क्षत्रविनाशाय तदा ज्ञेयो न संशयः ॥28॥ यदि विवर्ण बुध विशाखा के मध्य से गमन करे तो ब्राह्मण और क्षत्रियों का विनाश होता है, इसमें सन्देह नहीं है ।।28।।
मासोदितोऽनुराधायां यदा सौम्यो निषेवते।
पशुधन चरान् धान्यं तदा पीडयते भृशम् ॥29॥ जब मासोदित बुध अनुराधा में रहता है तो पशुधन को अत्यधिक कष्ट देता है और धान्य की हानि होती है ।।29।।
श्रवणे राज्यविभ्रंशो ब्राह्म ब्राह्मणपीडनम् ।
धनिष्ठायां च वैवयं धनं हन्ति धनेश्वरम् ॥30॥ विकृत वर्ण वाला बुध यदि श्रवण नक्षत्र में हो तो राज्य भ्रष्ट होता है, अभिजित् में हो तो ब्राह्मणों को पीड़ा होती है और धनिष्ठा में हो तो धनिकों का और धन का विनाशक होता है ।।30॥
उत्तराणि च पूर्वाणि याम्यायां दिशि हिंसति ।
धातुवादविदो हन्यात्तज्ज्ञांश्च परिपीडयेत् ॥3॥ यदि बुध दक्षिण मार्ग में तीनों उत्तरा-उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढा और उत्तराभाद्रपद तथा तीनों पूर्वा—पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढा और पूर्वाभाद्रपद का घात करे तो धातुवाद के ज्ञाताओं को पीड़ा होती है ।।31॥
ज्येष्ठायामनुपूर्वेण स्वातौ च यदि तिष्ठति ।
बुधस्य चरितं घोरं महादु:खदमुच्यते ॥32॥ यदि ज्येष्ठा और स्वाति में बुध रहे तो उसका यह घोर चरित अत्यन्त कष्ट देने वाला होता है ।।32॥
उत्तरे त्वनयो: सौम्यो यदा दृश्येत पृष्ठतः। पितृदेवमनुप्राप्तस्तदा मासमुपग्रहः ॥33॥
1. मूकान्धबधिरांश्चैव मु० । 2. यदि मु० । 3. महाज निक मु० ।