Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 578
________________ 480 भद्रबाहुसंहिता जो स्वप्न में अपने दांतो को गिरते हुए तथा अपने सिर से बालों को गिरते या झगड़ते हुए देखता है, उसके धन और बान्धव नाश को प्राप्त होते हैं और शारीरिक कष्ट भी उसे होता है ।।। 16।। दंष्टी शृंगी वराहो वा वानरो मगनायकः। अभिद्रवन्ति यं स्वप्ने भवेत्तस्य महद्भयम् ॥117॥ जो स्वप्न में अपने पीछे दाँत वाले और सींग वाले शूकर, बन्दर एवं सिंह आदि प्राणियों को दौड़ते हुए देखता है, उसे महान् भय प्राप्त होता है ।।117।। घृततैलादिभिः स्वांगे वाभ्यंगं निशि पश्यति। यस्ततो बुद्ध्यते स्वप्ने व्याधिस्तस्य प्रजायते ॥118॥ जो स्वप्न में अपने शरीर में घी या तेल की मालिश करते हुए देखता है तथा स्वप्न दर्शन के पश्चात् उसकी निद्रा खुल बाती है, उसे रोगोत्पत्ति होती है।।118॥ रक्तवस्त्राद्यलंकारैर्भूषिता प्रमदा निशि। यमालिंगति सस्नेहा विपत्तत्य महत्यपि ॥119॥ जो स्वप्न में रात्रि के समय लाल वर्ण के वस्त्रालंकारों से युक्त नारी का सस्नेह आलिंगन करते हुए देखता है, उसे महती विपत्ति का सामना करना पड़ता है।119॥ पीतवर्णप्रसूनैर्वालङ्कृता पीतवाससा। स्वप्ने गृहति यं नारी रोगस्तस्य भविष्यति ॥1200 __ जो स्वप्न में पीत वर्ण के पुष्पों द्वारा अलंकृत तथा पीत वर्ण के वस्त्रों से सज्जित नारी द्वारा अपने को छिपाया हुआ देखे वह शीघ्र ही रोगी होता है।।1200 पुरीषं लोहितं स्वप्ने मूत्रं वा कुरुते तथा। तदा जाति यो मयो द्रव्यं तस्य विनश्यति ॥121॥ जो स्वप्न में लाल वर्ण की टट्टी करते हुए या लाल वर्ण का मूत्र करते हुए देखे तथा स्वप्न दर्शन के पश्चात् जाग जाय तो उसका धन नाश होता है।121।। विष्टां लोमानि रौद्र वा कंकुम रक्तचन्दनम्। दृष्ट्वा यो बुद्ध्यते सुप्तो यस्तस्यार्थो विलीयते ॥122॥ जिसे स्वप्न में विष्टा-टट्टी, रोम, अग्नि, कुंकुम-रोरी एवं लालचन्दन

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