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भद्रबाहुसंहिता मत्स्य, मृत्तिका, गोरोचन, गोधूलि, देवमूर्ति, फल, पुष्प, अंजन, अलंकार, ताम्बूल, भात, आसन, मद्य, ध्वज, छत्र, माला, व्यंजन, वस्त्र, पद्म- कमल, भृगार, प्रज्वलित अग्नि, हाथी, बकरी, कुश, चामर, रत्न, सुवर्ण, रूप्य, ताम्र, औषधि, पल्लव, एवं हरित वृक्ष का दर्शन किसी भी कार्य के आरम्भ में सिद्धिदायक बताया गया है।
अंगार, भस्म, काष्ठ, रज्जु-रस्सी, कीचड़, कार्पास-कपास, दाल या फलों के छिलके, अस्थि, मूत्र, मल, मलिन व्यक्ति, अपांग या विकृत व्यक्ति, लोहा, काले वर्ण का अनाज, पत्थर, केश, सांप, तेल, गुड़, चमड़ा, खाली घड़ा, लवण, तक्र, शृखला, रजस्वला स्त्री, विधवा स्त्री एवं दीना, मलिन-वदन, मुक्तकेशा स्त्री का दर्शन किसी भी कार्य में अशुभ होता है।
नष्टो भग्नश्च शोकस्थ: पतितो लञ्चितो गतः। शान्तित: पातितो बद्धो भीतो दष्टश्च चूर्णित: 166॥ चोरो बद्धो हत: काल: प्रदग्ध: खण्डितो मृत:।
उद्वासित: पुनर्गम इत्याद्या: दुःखदा: स्मृताः ॥167॥ नष्ट, भग्न, दुःखी, मुण्डित शिर, गिरता-पड़ता, बद्ध, भयभीत, काटा हुआ, चोर, रस्सी या शृंखला से जकड़ा, वेदनाग्रस्त, जला हुआ, खण्डित, मुर्दा, गांव से निष्कासित होने के पश्चात् पुन: गांव में निवास करने वाला इत्यादि प्रकार के व्यक्तियों का दर्शन दुःखप्रद होता है ।।166-167॥
इत्येवं निमित्तकं सर्व कार्य निवेदनम्।
मन्त्रोऽयं जपितः सिद्ध्येद्वारस्य प्रतिमाग्रत: ॥168॥ इस प्रकार कार्यसिद्धि के लिए निमित्तों का परिज्ञान करना चाहिए। निम्न मन्त्र की भगवान् महावीर की प्रतिमा के सम्मुख साधना करनी चाहिए। मन्त्रजाप करने से ही सिद्ध हो जाता है ।। 168॥
अष्टोत्तरशतपुष्प: मालतीनां मनोहरैः । ॐ ह्रीं णमो अरिहन्ताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा। मन्त्रेणानेन हस्तस्य दक्षिणस्य च तर्जनी।
अष्टाधिकशतं वारमभिमन्त्र्य मषीकृतम् ॥16॥ भगवान् महावीर स्वामी की प्रतिमा के समक्ष उत्तम मालती के पुष्पों से 'ॐ हों अहं णमो अरिहन्ताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा' इस मन्त्र का 108 बार जाप करने से मन्त्र सिद्ध हो जायगा । पश्चात् मन्त्रसाधक अपने दाहिने हाथ की तर्जनी