Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 584
________________ 486 भद्रबाहुसंहिता ॐ ह्रीं लाः ह्वः पः लक्ष्मीं नवीं कुरु कुरु स्वाहा । मृतं मन्त्रिततैलेन माजितं ता प्रभाजनम् । पिहितं शुक्लवस्त्रेण सन्ध्यायां स्थापयेत् सुधीः ॥154॥ तस्योपरि पुनर्दत्वा नूतनां कुण्डिकां ततः । जातिपुष्पैर्जपेदेवं स्वष्टाधिकशतं ततः ।। 1550 क्षीरान्नभोजनं कृत्वा भूमौ सुप्येत मन्त्रिणा । प्रातः पश्येत्स तत्रैव तैलमध्ये निजं मुखम् ॥156॥ निजास्यं चेन्न पश्येच्च षण्मासं च जीवति । इत्येवं च समासेन द्विधा लिंगं प्रभाषितम् ॥1157॥ अब आचार्य तेल में मुखदर्शन की विधि द्वारा आयु का निश्चय करने की प्रक्रिया बतलाते हैं कि "ॐ ह्रीं लाः ह्रः पः लक्ष्मी झवीं कुरु कुरु स्वाहा " इस मंत्र द्वारा मंत्रित तेल से भरे हुए एक सुन्दर साफ या स्वच्छ तांबे के बर्तन को सन्ध्या समय शुक्ल वस्त्र से ढककर रखे, पुनः उस पर एक नवीन कुण्डिका स्थापित कर उपर्युक्त मंत्र का जुही के पुष्पों से 108 बार जाप करे, तत्पश्चात् खीर का भोजन कर मंत्रित व्यक्ति भूमि पर शयन करे और प्रातःकाल उठकर उस तेल में अपने मुख को देखे । यदि अपना मुख इस तेल में न दिखलाई पड़े तो छह मास की आयु समझनी चाहिए। इस प्रकार संक्षेप से आचार्य ने दोनों प्रकार लिंगों का वर्णन किया है 11154-1571 शब्दनिमित्तं पूर्वं स्नात्वा निमित्ततः शुचिवासा विशुद्धधीः । अम्बिकाप्रतिमां शुद्धां स्नापयित्वा रसादिकैः ॥1158॥ अचित्वा चन्दनैः पुष्पैः श्वेतवस्त्रसुवेष्टिताम् । प्रक्षिप्य वामकक्षायां गृहीत्वा पुरुषस्ततः ॥159॥ शब्द निमित्त का वर्णन करते हुए आचार्यों ने बतलाया है कि शब्द दो प्रकार के होते हैं – देवी और प्राकृतिक । यहाँ देवी शब्द का कथन किया जा रहा है। स्नानकर स्वच्छ और शुभ्र वस्त्र धारण करे । अनन्तर अम्बिका की मूर्ति का जल, दुग्धादि से अभिषेक कर श्वेत वस्त्रों से उसे आच्छादित करे । पश्चात् चन्दन, पुष्प, नैवेद्य आदि से उसकी पूजा करे । अनन्तर बायें हाथ के नीचे रखकर (शब्द सुनने के लिए निम्न विधि का प्रयोग करे ) || 158-159।। निशायाः प्रथमे यामे प्रभाते यदि वा व्रजेत् । इमं मन्त्रं पठन् व्यक्तं श्रोतुं शब्दं शुभाशुभम् 111601

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