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परिशिष्टाध्यायः
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वस्त्रस्य कोणे निवसन्ति देवा
नराश्च पाशान्तशान्तमध्ये। शेषास्त्रयश्चात्र निशाचरांशा
स्तथैव शयनासनपादुकासु ॥190॥ नवीन वस्त्र धारण करते समय उसके शुभाशुभत्व का विचार निम्न प्रकार से करना चाहिए। नये वस्त्र के नौ भाग करके विचार करना चाहिए। वस्त्र के कोणों के चार भागों में देवता, पाशान्त के दो भागों में मनुष्य और मध्य के तीन भागों में राक्षस निवास करते हैं । इसी प्रकार शय्या, आसन और खड़ाऊं के नौ भाग करके फल का विचार करना चाहिए ।।190।।
लिप्ते मषी कर्दमगोमयाद्य
श्छिन्ने प्रदग्धे स्फुटिते च विन्द्यात् । पुष्टे नवेऽल्पाल्पतरं च भुङ्क्ते
पापे शुभं वाधिकमुत्तरीये।1911 यदि धारण करते ही नये वस्त्र में स्याही, गोबर, कीचड़ आदि लग जाय, फट जाय, जल जाय तो अशुभ फल होता है। यह फल उत्तरीय वस्त्र में विशेष रूप से घटित होता है ॥191॥
रुग्राक्षसांशष्वथ वापि मृत्युः
पुंजन्मतेजश्च मनुष्यभागे। भागेऽमराणामथभोगवृद्धि:
प्रान्तेषु सर्वत्र वदन्त्यनिष्टम् ।192॥ राक्षसों के भागों में वस्त्र में छेद हों तो वस्त्र के स्वामी को रोग या मृत्यु हो, मनुष्य भागों में छेद हों तो पुत्रजन्म और कान्ति-लाभ, देवताओं के भागों में छेद आदि हों तो भोगों में वृद्धि एवं सभी भागों में छेद हों तो अनिष्ट फल होता है। समस्त नवीन वस्त्र में छिद्र होना अशुभ है ।।192।।
कंकल्लवोलूककपोतकाक
क्रव्यादगोमायुखरोष्ट्रसर्पाः। छेदाकृतिर्दैवतभागगापि,
पुंसां भयं मृत्युसमं करोति ॥193॥ कंक पक्षी, मेढ़क, उल्लू, कपोत, मांसभक्षी गृध्रादि, जम्बुक, गधा, ऊंट और सर्प के आकार का छेद देवताओं के भाग में भी हो तो भी मृत्यु के समान व्यक्तियों