Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 589
________________ परिशिष्टाऽध्यायः लाक्षा; कुंकुम, गोरोचना इत्यादि विधियों से आयु की परीक्षा करने के उपरान्त चक्र द्वारा आयु परीक्षा की विधि का निरूपण करते हैं । सोलह दल का एक कमल भीतर तथा इस कमल के बाहर भी सोलह दल का एक दूसरा कमल बनाना चाहिए । बाह्य कमल के पत्तों पर अ आ आदि मूल स्वरों की स्थापना करनी चाहिए। भीतर वाले कमल के पत्तों पर वर्षों की तथा बाहर वाले कमल के पत्तों पर महीनों की स्थापना करनी चाहिए । कणिकाओं में दिवसों की स्थापना करनी चाहिए। इस प्रकार निर्मित चक्र की एक सप्ताह तक पूजा करनी चाहिए, पश्चात् उसका निरीक्षण कर शुभाशुभ फल की जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए ।।178-180।। यद्दले चाक्षरं लुप्तं तद्दिने म्रियते ध्रुवम् । वर्षं मासं दिन पश्येत् स्वस्य नाम परस्य वा ॥ 181॥ निरीक्षण करने पर जिस तिथि, मास या वर्ष की स्थापना वाले दल का स्वर लुप्त हो, उसी तिथि, मास और वर्ष में अपनी या अन्य व्यक्ति की — जिसके लिए परीक्षा की जा रही है, मृत्यु समझनी चाहिए ॥ 181 ॥ यदा वर्ण न लुप्तं स्यात्तदा मृत्युर्न विद्यते । वर्षं द्वादशपर्यन्तं कालज्ञानं विनोदितम् ॥1821 491 यदि कोई भी स्वर लुप्त न हो तो जिसके सम्बन्ध में विचार किया जा रहा है, उसकी मृत्यु नहीं होती । इस चक्र द्वारा बारह वर्ष की आयु का ही ज्ञान किया जाता है ।।182 प्रभूतवस्त्रदाश्विनी भरण्यर्थापहारिणी । प्रदह्याग्निदेवते प्रजेश्वरेऽर्थसिद्धये ॥18 ॥ अश्विनी नक्षत्र में नवीन वस्त्र धारण करने से बहुत वस्त्र मिलते हैं, भरणी में नवीन वस्त्र धारण करने से अर्थ की हानि होती है, कृत्तिका में नवीन वस्त्र धारण करने से वस्त्र दग्ध होता है, रोहिणी में नवीन वस्त्र धारण करने से धन प्राप्ति होती है ॥13॥ मृगे तु मूषकाद्भयं व्यसुत्वमेव शांकरे । पुनर्वसौ शुभागमस्तदग्रभे धनैर्युतिः ॥ 184 | मृगशिरा में नवीन वस्त्र धारण करने से वस्त्रों को चूहों के काटने का भय, आर्द्रा में नवीन वस्त्र धारण करने से मृत्यु, पुनर्वसु में वस्त्र धारण करने से शुभ की प्राप्ति और पुष्य में वस्त्र धारण करने से धनलाभ होता है ||18॥

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