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भद्रबाहुसंहिता
अवस्था का स्वप्न निष्फल होता है ।। 141।।
प्रस्वपेदशुभे स्वप्ने पूर्वदृष्टश्च निष्फलः ।
शुभे जाते पुनः स्वप्ने सफलः स तु तुष्टिकृत् ॥142॥
अशुभ स्वप्न के आने पर व्यक्ति स्वप्न के पश्चात् जगकर पुनः सो जाय तो अशुभ स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है । यदि अशुभ स्वप्न के अनन्तर पुनः शुभ स्वप्न दिखलायी पड़े तो अशुभ फल नप्ट होकर शुभ फल की प्राप्ति होती है ।142।।
प्रस्वपेदशुभे स्वप्ने जप्त्वा पञ्चनमस्त्रियाम् । दृष्टे स्वप्ने शुभेनैव दुःस्वप्ने शान्तिमाचरेत् ॥143॥
अशुभ स्वप्न के दिखलायी पड़ने पर जगकर णमोकार मंत्र का पाठ करना चाहिए। यदि अशुभ स्वप्न के पश्चात् शुभ स्वप्न आये तो दुष्ट स्वप्न की शान्ति का उपाय करने की आवश्यकता नहीं ।। 43॥
स्वं प्रकाश्य गुरोरग्रे सुधीः स्वप्नं शुभाशुभम् । परेषामशुभं स्वप्नं पुरो नैव प्रकाशयेत् ॥1440
बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने गुरु के समक्ष शुभ और अशुभ स्वप्नों का कथन करना चाहिए, किन्तु अशुभ स्वप्न को गुरु के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति के समक्ष कभी भी नहीं प्रकाशित करना चाहिए ।। 144॥
निमित्तं स्वप्नजं चोक्त्वा पूर्वशास्त्रानुसारतः । लिङ्ग ेन तं ब्रुवे इष्टं निर्दिष्टं च यथागमम् ॥145॥
पूर्व शास्त्रों के अनुसार स्वप्न निमित्त का वर्णन किया गया है. अब लिंग के अनुसार इसके इप्टानिष्ट का आगमानुकूल वर्णन करते हैं ||145||
शरीरं प्रथमं लिङ्ग द्वितीयं जलमध्यगम् । यथोक्तं गौतमेनैव तथैवं प्रोच्यते मया ||1461
प्रथम लिंग शरीर है और द्वितीय लिंग जलमध्यग है, इनका जिस प्रकार से पहले गौतम स्वामी ने वर्णन किया है वैसा ही मैं वर्णन करता हूँ ।। 146 स्नातं लिप्तं सुगन्धेन वरमन्त्रेण मन्त्रितम् । अष्टोत्तरशतेनापि यन्त्री पश्येत्तदङ्गकम् ॥147॥
ॐ ह्रीं लाः ह्नः प: लक्ष्मीं भवीं कुरु कुरु स्वाहा ।
स्नान कर सुगन्धित लेप लगाकर 108 बार इस मंत्र से मंत्रित होकर स्वप्न