Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 580
________________ 482 भद्रबाहुसंहिता खजूरोऽप्यनलो वेणुगुल्मो वाप्यहितो द्रुमः। मस्तके तस्य जायेत गत एव स निश्चितम् ॥129॥ स्वप्न में जिसके मस्तक पर खजूर, अग्नि संयुक्त बाँस लता एवं वृक्ष पैदा हुए दिखलायी पड़ें उसकी शीघ्र मृत्यु होती है ।। 129।। हृदये वा समुत्पन्नात् हृद्रोगेण स नश्यति । शेषांगेषु प्ररूढास्ते तत्तदंगविनाशकाः ॥130॥ जो स्वप्न में वक्षस्थल पर उपर्युक्त बज़र, बाँस आदि को उत्पन्न हुआ देखता है उसकी हृदयरोग से मृत्यु होती है तथा शरीर के शेषांगों में से जिस अंग पर उक्त पदार्थों को उत्पन्न होते हुए देखता है उस-उस अंग का विनाश होता है।।13011 रक्तसूवरसूत्रैर्वा रक्तपुष्पैविशेषतः। यदंग वेष्ट्यते स्वप्ने तदेवांगं विनश्यति ॥131॥ जो स्वप्न में अपने जिस अंग को लालमुत, लालपुष्प, या रका लता-तन्तुओं से वेष्टित देखता है उसके उस अंग का विनाश होता है ।। 13 1।। द्विपो ग्रहो मनुष्यो वा स्वप्ने कर्षति यं नरम् । मोक्षं बद्धस्य बन्धे वा मुक्ति च समादिशेत् ॥132॥ स्वप्न में जिस मनुष्य को जो हाथी, मगर या मनुष्य द्वारा खींचते हुए देखता है उसकी कारागार मे मुक्ति होती है ।।132।। मधु छत्रं विशेत् स्वप्ने दिवा वा यस्य वेश्मनि। अर्थनाशो भवेत्तस्य मरणं वा विनिदिशेत् ॥133॥ स्वप्न में जिसके घर में दिन में मधु-मक्खी का छत्ता प्रवेश होते हुए दिखलाई पड़े, उसका धन-नाश अथवा मरण होता है ।। 133।। विरेचनेऽर्थनाश: स्यात् छर्दने मरणं ध्र वम् । वाहे पादपछत्राणां गृहाणां ध्वंसमादिशेत् ॥14॥ जो स्वप्न में विरेचन अर्थात् दस्त लगते हुए देखता है उसके धन का नाश होता है । वमन करते हुए देखने से मरण होता है। वृक्ष की चोटी पर चढ़ते हए देखने से घर का नाश होता है ।। 1 34।। स्वगाने रोदनं विद्यात् नर्तने बधबन्धनम् । हसने शोकसन्तापं गमने कलहं तथा ॥135॥

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