Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 577
________________ परिशिष्टाऽध्यायः दध्नेष्टसज्जनप्रेम गोधूमैः सौख्यसंगमः । जिनपूजा यवैर्दृष्टः सिद्धार्थेर्लभते शुभम् ||1100 स्वप्न में दही के दर्शन से सज्जन प्रेम की प्राप्ति, गेहूँ के दर्शन से सुख की प्राप्ति, जो दर्शन से जिन-पूजा की प्राप्ति एवं पीली सरसों के देखने से शुभ फल की प्राप्ति होती है । 110॥ शयनासनयानानां स्वांगवाहनवेश्मनाम् । दाहं दृष्ट्वा ततो बुद्धो लभते कामितां श्रियम् ॥111॥ 479 स्वप्न में शयन, आसन, सवारी स्वांगवाहन और मकान का जलना देखने के उपरान्त शीघ्र ही जाग जाने से अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है ।। 111।। निजांत्रैर्वेष्टयेद् ग्रामं स भवेन् मण्डलाधिपः । नगरं वेष्टयेद्यस्तु स पुनः पृथिवीपतिः ।।112 | जो स्वप्न में अपने शरीर की नसों से गाँव को देष्टित करते हुए देखे वह मण्डलाधिप तथा जो नगर को वेष्टित करते हुए देखे वह पृथ्वीपति - राजा होता है ।।112।। सरोमध्ये स्थितः पात्रे पायसं यो हि भक्ष्यति । आसनस्थस्तु निश्चिन्तः स महाभूमिपो भवेत् ॥113॥ जो स्वप्न में तालाब में स्थित हो, बर्तन में रखी हुई खीर को निश्चिन्त होकर खाते हुए देखता है, वह चक्रवर्ती राजा होता है ||113॥ देवेष्टा पितरो गात्रो लिंगिनो मुखस्थस्त्रियः । वरं ददति यं स्वप्ने स तथैव भविष्यति ॥11॥ स्वप्न में देवपूजिका, पितर - व्यन्तर आदि की भक्ता, या देव का आलिंगन करने वाली नारियां जिस प्रकार का वरदान देती हुई दिखलाई पड़ें, उसी प्रकार का फल समझना चाहिए ।।114 | सितं छत्वं सितं वस्त्रं सितं कर्पूरचन्दनम् । लभते पश्यति स्वप्ने तस्य श्रीः सर्वतोमुखी ॥115॥ जो स्वप्न में श्वेत छत्र, श्वेत वस्त्र, श्वेत चन्दन एवं कपूर आदि वस्तुओं को प्राप्त करते हुए देखता है, उसे सभी प्रकार के अभ्युदय प्राप्त होते हैं ।।1151 पतन्ति दशना यस्य निजकेशाश्वमस्तकात् । स्वधनमित्रयोर्नाशो बाधा भवति शरीरके ॥116॥

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