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भद्रबाहुसंहिता
हंसना देखने से शोक, पढ़ना देखने से कलह, बन्धन देखने से स्थान प्राप्ति और छूटना देखने से देशान्तर गमन होता है ||4611
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सरांसि सरितो वृक्षान् पर्वतान् कलशान् गृहान् 1 शोकार्त्तः पश्यति स्वप्ने 'तस्य शोकोऽभिवर्धते ॥ 47 ॥
जो व्यक्ति स्वप्न में तालाब, नदी, वृक्ष पर्वत, कलश और गृहों को शोकार्त्त देखता है उसका शोक बढ़ता है ||47||
'मरुस्थलों तथा भ्रष्टं कान्तारं वृक्षवजतम् । सरितो नीरहीनाश्च शोकार्तस्य शुभावहाः ॥48 ॥
शोकयुक्त व्यक्ति यदि स्वप्न में मरुस्थल, वृक्षरहित वन एवं जलरहित नदी को देखता है तो उसके लिए ये स्वप्न शुभ फलप्रद होते हैं । 48 ॥
आसनं शयनं यानं गृहं वस्त्रं च भूषणम् । स्वप्ने कमै प्रदीयन्ते सुखिनः श्रियमाप्नुयात् ॥49॥
स्वप्न में जो कोई किसी को आसन, शय्या, सवारी, घर, वस्त्र, आभूषण दान करता हुआ देखता है, वह सुखी होता है तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ॥ 49 ॥ अलंकृतानां द्रव्याणां वाजि-वारणयोस्तथा ।
वृषभस्य च शुक्लस्य दर्शने प्राप्नुयाद् यशः ॥50॥
अलंकृत पदार्थ, श्वेत हाथी, घोड़े, बैल आदि का स्वप्न में दर्शन करने से यश की प्राप्ति होती है |50|
पताका मसिर्याष्ट वा शुक्ति' - मुक्तान् सकाञ्चनान् । दीपिकां लभते स्वप्ने योऽपि स लभते धनम् ॥51॥
पताका, तलवार, लाठी, अथवा, सीप, मोती, सोना, दीपक आदि को जो भी स्वप्न में प्राप्त करना देखता है, वह धन प्राप्त करता है |51||
मूत्रं वा कुरुते स्वप्ने पुरीषं वा सलोहितम् । प्रतिबुध्येत्तथा यश्च लभते सोऽर्थनाशनम् ॥52॥
जो स्वप्न में पेशाब या खून सहित टट्टी करना देखता है, और स्वप्न देखने के बाद ही जग जाता है, वह धननाश को प्राप्त होता है |52||
1. स च मु० 1 2 मुद्रित प्रति में वह श्लोक नहीं है । 3. यस्वाभि-दीयन्ते मु० । 4. शक्ति मु० मुक्तान् मु० ।