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भद्रबाहुसंहिता
रुद्राक्षी विकृता काली नारी स्वप्ने च कर्षति ।
उत्तरां दक्षिणां दिशं मृत्युः शीघ्र समीहते ॥59॥ __ भयंकर, विकृत रूपवाली, काली स्त्री यदि स्वप्न में उत्तर या दक्षिण दिशा की ओर खींचे तो शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होता है ।। 59॥
जटीं मुण्डी विरूपाक्षां मलिनां मलिनवाससाम् ।
स्वप्ने य: पश्यति ग्लानि समूहे भयमादिशेत् ॥60॥ जटाधारी, सिरमुण्डित, विरूपाकृति वाली, मलिन एवं मलिन वस्त्र वाली स्त्री को स्वप्न में ग्लानिपूर्वक देखना सामूहिक भय का सूचक है ।।60॥
तापसं पुण्डरीकं वा भिक्षु विकलमेव च।
दृष्ट्वा स्वप्ने विबुध्येत ग्लानि तस्य समादिशेत् ।।61॥ तपस्वी पुण्डरीक तथा विकल भिक्षु को स्वप्न में देखकर जो जाग जाता है, उसे ग्लानि फल की प्राप्ति होती है ।।61॥
स्थले वाऽपि विकीर्येत जले वा नाशमाप्नुयात् ।
यस्य स्वप्ने नरस्यास्य तस्य विद्यान्महद् भयम् ॥62॥ जो व्यक्ति भूमि पर विकीर्ण-फल जाना और जल में नाश को प्राप्त हो जाना देखता है, उस व्यक्ति को महान् भय होता है ।।62।।
वल्ली-गुल्मसमो वृक्षो वल्मीको यस्य जायते।
शरीरे तस्य विज्ञेयं तदंगस्य विनाशनम् ॥63॥ जो व्यक्ति स्वप्न में अपने शरीर पर लता, गुल्म, वृक्ष, वाल्मीक -बॉबी आदि का होना देखता है उसके शरीर का विनाश होता है ।।63।।
मालो वा वेणुगुल्मो वा खजूरो हरितो द्रुमः।
मस्तके जायते स्वप्ने तस्य साप्ताहिक: स्मृतः ।।641 स्वप्न में जो व्यक्ति अपने मस्तक पर माला, बांस, गुल्म, खर अथवा हरे वृक्षों को उपजते देखता है, उसकी एक सप्ताह में मृत्यु होती है।।641
हृदये यस्य जायन्ते तद्रोगेण विनश्यति।
अनंगजायमानेषु तदंगस्य विनिर्दिशेत् ॥65॥ यदि हृदय में उक्त वृक्षादिकों का उत्पन्न होना स्वप्न में देखे तो हृदय रोग से
1. द्वादशं मु० । 2. सव्यं कमलमेव च मु० । 3 तदा गमू विरेचनम् मु० ।