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भद्रबाहुसंहिता मण्मयं नागमारूढ: सागरे प्लवते हितः।
तथैव च विबुध्येत सोऽचिराद् वसुधाधिपः ॥72॥ जो स्वप्न में मृत्तिका के हाथी पर सवार होकर सुख से समुद्र को पार करता हआ देखे तथा उसी स्थिति में जाग जाय तो वह शीघ्र ही पृथ्वी का स्वामी होता है ।।72॥
पाण्डुराणि च वेश्मानि पुष्प-शाखा-फलान्वितान् ।
यो वृक्षान् पश्यति स्वप्ने सफलं चेष्टते तदा ॥73॥ जो व्यक्ति स्वप्न में श्वेत भवनों को तथा पुष्प, फल और शाखाओं से युक्त वृक्षों को देखता है, तो उसकी चेप्टाएँ सफल होती हैं ।। 73।।
वासोभिर्हरित: शुक्लर्वेष्टित: प्रतिबुध्यते ।
दह्यते योऽग्निना वाऽपि बध्यमानो विमुच्यते ॥74॥ जो स्वप्न में शुल्क और हरे वृक्षों से वेष्टित होकर अपने को देखता है, तथा उसी समय जाग जाता है अथवा अग्नि द्वारा जलता हुआ अपने को देखता है, वह बध्यमान होते हुए भी छोड़ दिया जाता है ।।7411
दुग्ध-तैल-घृतानां वा क्षीरस्य च विशेषतः ।
प्रशस्तं दर्शनं स्वप्ने भोजनं न प्रशस्यते ॥75॥ स्वप्न में दूध, तेल, घी का दर्शन शुभ है, भोजन नहीं। विशेष रूप से दूध का दर्शन शुभ माना गया है ।।75।।
अग-प्रत्यंगयुक्तस्य शरीरस्य विवर्धनम।
प्रशस्तं दर्शनं स्वप्ने नख-रोमविवर्धनम् ॥76॥ स्वप्न में शरीर के अंग-प्रत्यंग का बढ़ना तथा नख और रोम का बढ़ना शुभ माना गया है ।।761
उत्संगः पूर्यते स्वप्ने यस्य धान्यरनिन्दितैः।
फल-पुष्पैश्च सम्प्राप्तः प्राप्नोति महतीं श्रियम् ॥77॥ स्वप्न में जिस व्यक्ति की गोद सुन्दर धान्य, फल, पुष्प से भर दी जाय, वह बहुत धन प्राप्त करता है ॥770
1. पतति मु०।