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षड्विंशतितमोऽध्यायः कन्या वाऽऽर्यापि वा कन्या रूपमेव विभूषिता।
प्रकृष्टा दृश्यते स्वप्ने लभते योषित: श्रियम् ॥78॥ यदि स्वप्न में सुन्दर रूपयुक्त कन्या या आर्या दिखलाई पड़े तो सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है ।।78॥
प्रक्षिप्यति यः शस्त्रैः पृथिवीं पर्वतान् प्रति।
शुभमारोहते यस्य सोऽभिषेकमवाप्नुयात् ॥79॥ जो व्यक्ति स्वप्न में शस्त्रों द्वारा शत्रुओं को परास्त कर पृथ्वी और पर्वतों को अपने अधीन कर लेना देखता है अथवा जो शुभ पर्वतों पर अपने को आरोहण करता हुआ देखता है, वह राज्याभिषेक को प्राप्त होता है ।।79॥
नारी पंस्त्वं नर: स्त्रीत्वं लभते स्वप्नदर्शने।
बध्येते तावुभी शीघ्र कुटुम्बपरिवृद्धये ॥80॥ यदि स्वप्न में स्त्री अपने को पुरुष होना और पुरुष स्त्री होना देखे तो वे शीघ्र कुटुम्ब के बन्धन में बंधते हैं ।।80॥
राजा राजसुतश्चौरो यो सह्याधन-धान्यत:।
स्वप्ने संजायते कश्चित् स राजामभिवृद्धये ॥8॥ यदि स्वप्न में कोई धन-धान्य से युक्त हो राजा, राजपुत्र या चोर होना अपने को देखे वह राजाओं की अभिवृद्धि को पाता है ।।81।।
रुधिराभिषिक्तां कृत्वा य: स्व ने परिणीयते।
धन्य-धान्य-श्रिया युक्तो न चिरात् जायते नरः ॥820 जो व्यक्ति स्वप्न में रुधिर से अभिषिक्त होकर विवाह करता हुआ देखता है, वह व्यक्ति चिरकाल तक धन-धान्य सम्पदा से युक्त नहीं होता ।।82।।
शस्त्रेण छिद्यते जिह्वा स्वप्ने यस्य कथञ्चन ।
क्षत्रियो राज्यमाप्नोति शेषा वृद्धिमवाप्नुयुः ॥83॥ यदि स्वप्न में जिह्वा को शस्त्र से छेदन करता हुआ दिखलाई पड़े तो क्षत्रियों को राज्य की प्राप्ति और अन्य वर्ण वालों का अभ्युदय होता है ।।83।।
देव-साधु-द्विजातीनां पूजनं शान्तये हितम् । पापस्वप्नेषु कार्यस्य शोधनं चोपवासनम् ॥840
1. कुमन्या मु०।