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परिशिष्टाऽध्यायः
कोयला, चमड़ा या अन्य किसी प्रकार की छाया से रहित भू-पृष्ठ पर छाया का दर्शन करें ।।48-5011
न पश्यति आतुरश्छायां निजां तत्रैव संस्थितः । दशदिनान्तरं याति धर्मराजस्य मन्दिरम् ॥51॥
जो रोगी उक्त प्रकार के भू-पृष्ठ पर स्थित हो अपनी छाया को न देखे निश्चय से वह दश दिन में मरण को प्राप्त हो जाता है ॥51॥
अधोमुखीं निजच्छायां छायायुग्मञ्च पश्यति । दिनद्वयञ्च तस्यायुर्भाषितं मुनिपुंगवैः ॥52॥
जो रोगी व्यक्ति अपनी छाया को अधोमुखी रूप में देखे तथा छाया को दो हिस्सों में विभक्त देखे उसकी दो दिन में मृत्यु हो जाती है, ऐसा श्रेष्ठ मुनियों कहा है |52||
मन्त्री न पश्यति छायामातुरस्य निमित्तिकाम् । सम्यक् निरीक्ष्यमाणोऽपि दिनमेकं स जीवति ॥53॥
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यदि रोगी व्यक्ति उपर्युक्त मन्त्र का जापकर छाया पर दृष्टि रखते हुए भी उसे न देख सके, उसका जीवन एक दिन का समझना चाहिए ॥53॥
वृषभक रिमहिषरासभमेषाश्वादिकविविधरूपाकारैः । पश्येत् स्वच्छायां लघु चेत् मरणं तस्य सम्भवति ॥54॥
यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को बैल, हाथी, महिप, गधा, भेड़ा और घोड़ा इत्यादि अनेक रूपों में देखता है तो उसका तत्काल मरण जानना चाहिए ॥54॥
छायाबिम्बं ज्वलत्प्रान्तं सधूमं वीक्ष्यते निजम् । नोयमानं नरैः कृष्णस्तस्य मृत्युर्लघु मतः ॥ 55 ॥
यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को अग्नि से प्रज्वलित, धूम से आच्छादित और कृष्ण वर्ण के व्यक्तियों के द्वारा ले जाते हुए देखता है उसकी शीघ्र मृत्यु हो 115511
नीलां पीतां तथा कृष्णां छायां रक्तां च पश्यति । त्रिचतुः पञ्चषड्रात्रं क्रमेणैव स जीवति ||56|
यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को नीली, पीली, काली और लाल देखता है वह क्रमशः तीन, चार, पाँच और छह दिन रात तक जीवित रहता है ||56||