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षड्विंशतितमोऽध्यायः
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के मत से 7 महीने में), तीसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न तीन महीने में, चौथे प्रहर में देखे गये स्वप्न एक महीने में (वराहमिहिर के मत से 16 दिन में), ब्राह्म मुहूर्त (उषाकाल) में देखे गये स्वप्न दस दिन में और प्रातःकाल सूर्योदय से कुछ पूर्व देखे गये स्वप्न अतिशीघ्र फल देते हैं । अब जैनाजैन ज्योतिषशास्त्र के आधार पर कुछ स्वप्नों का फल उद्धृत किया जाता है
अगुरु-जैनाचार्य भद्रबाहु के मत से- काले रंग का अगुरुदेखने से नि सन्देह अर्थ लाभ होता है। जैनाचार्य सेन मुनि के मत से, सुख मिलता है। वराहमिहिर के मत से, धनलाभ के साथ स्त्रीलाभ भी होता है। बृहस्पति के मत से—इष्ट मित्रों के दर्शन और आचार्य मयूख एवं दैवज्ञवर्य गणपति के मत से अर्थलाभ के लिए विदेश-गमन होता है।
अग्नि-जैनाचार्य चन्द्रसेन मुनि के मत से धूम युक्त अग्नि देखने से उत्तम कान्ति, वराहमिहिर और मार्कण्डेय के मत से प्रज्वलित अग्नि देखने से कार्यसिद्धि, दैवज्ञ गणपति के मत मे अग्निभक्षण करना देखने से भूमिलाभ के साथ स्त्री रत्न की प्राप्ति और बृहस्पति के मत से जाज्वल्यमान अग्नि देखने से कल्याण होता है।
अग्नि-दग्ध-जो मनुष्य आसन, शय्या, यान और वाहन पर स्वयं स्थित हो कर अपने शरीर को अग्नि दग्ध होते हुए देखे तो, मतान्तर से अन्य को जलता हुआ देखे और तत्क्षण जाग उठे, तो उसे धन-धान्य की प्राप्ति होती है। अग्नि में जल कर मृत्यु देखने से रोगी पुरुष की मृत्यु और स्वस्थ पुरुष बीमार पड़ता है। गृह अथवा दूसरी वस्तु को जलते हुए देखना शुभ है । वराहमिहिर के मत से अग्निलाभ भी शुभ है।
अन्न-अन्न देखने से अर्थ-लाभ और सन्तान की प्राप्ति होती है। आचार्य चन्द्रसेन के मत से श्वेत अन्न देखने से इष्ट मित्रों की प्राप्ति, लाल अन्न देखने से रोग, पीला अनाज देखने से हर्ष और कृष्ण अन्न देखने से मृत्यु होती है ।
अलंकार--अलंकार देखना शुभ है, परन्तु पहनना कष्टप्रद होता है।
अस्त्र-अस्त्र देखना शुभ फलप्रद, अस्त्र द्वारा शरीर में साधारण चोट लगना तथा अस्त्र लेकर दूसरे का सामना करना विजयप्रद होता है।
अनुलेपन-श्वेत रंग की वस्तुओं का अनुलेपन शुभ फल देने वाला होता है। वराहमिहिर के मत से लाल रंग के गन्ध, चन्दन तथा पुष्पमाला आदि के द्वारा अपने को शोभायमान देखे तो शीघ्र मृत्यु होती है।
अन्धकार-अन्धकारमय स्थानों में अर्थात् वन, भूमि, गुफा, सुरंग आदि स्थानों में प्रवेश होते हुए देखना रोगसूचक है।
आकाश-भद्रबाहु के मत से निर्मल आकाश देखना शुभ फलप्रद, लाल वर्ण की आभा वाला आकाश देखना कष्टप्रद और नील वर्ण का आकाश देखना