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षड्विंशतितमोऽध्यायः
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उसका विनाश होता है । जिस अंग में उक्त वृक्षादिकों का उत्पन्न होना स्वप्न मे दिखलाई पड़ता है, उसी अंग की बीमारी द्वारा विनष्टि होती है ।।65॥
रक्तमाला तथा माला रक्तं वा सूत्रमेव च।
यस्मिन्नेवावबन्ध्येत् तदंगेन विक्लिश्यति ।।66॥ स्वप्न में लाल माला या लाल सूत्र के द्वारा जो अंग बाँधा जाय, उसी अंग में क्लेश होता है ॥66॥
ग्राहो नरं नगं कञ्चित यदा स्वप्ने च कर्षति ।
बद्धस्य मोक्षमाचष्टे मुक्ति बद्धस्य निदिशेत ॥67॥ ___ जब स्वप्न में कोई मकर या घड़ियाल मनुष्य को खींचता हुआ-सा दिखलाई पड़े तो, जो व्यक्ति बद्ध है-कारागार आदि में बद्ध है या मुकदमे में फंसा है, उसकी मुक्ति होती है-छूट जाता है ।।67॥
पीतं पुष्पं फलं यस्मै रक्तं वा सम्प्रदीयते।
कृताकृतसुवर्ण वा तस्य लाभो न संशय: ।।68॥ स्वप्न में यदि किसी व्यक्ति को पीले या लाल फल-फूलों को देता दिखलाई पड़े तो उसे सोना, चाँदी का लाभ निःसन्देह होता है ।।68॥
श्वेतमांसासनं यानं सितमाल्यस्य धारणम्।
श्वेतानां वाऽपि द्रव्याणां स्वप्ने दर्शनमुत्तमम् ॥69॥ श्वेत मांस, श्वेत आसन, श्वेत सवारी, श्वेत माला का धारण करना तथा अन्य श्वेत द्रव्यों का दर्शन स्वप्न में शुभ होता है ।।69॥
बलीवर्दयुतं यानं योऽभिरूढ: प्रधावति ।
प्राची दिशमुदीची वा सोऽर्थलाभमवाप्नुयात् ।।70॥ ' जो व्यक्ति स्वप्न में श्रेष्ठ बैलों के रथ पर चढ़कर पूर्व या उत्तर की ओर गमन करता हुआ देखता है, वह धन प्राप्त करता है ।। 70॥
नग-वेश्म-पुराणं तु दीप्तानां तु शिरस्थित:।
य: स्वप्ने मानव: सोऽपि महीं भोक्तुं निरामयः ॥7॥ जो व्यक्ति स्वप्न में सिर पर पर्वत, घर, खण्डहर तथा दीप्तिमान् पदार्थों को देखता है, वह स्वस्थ होकर पृथ्वी का उपभोग करता है ।171।।
1. विकश्यति मु० । 2. सौमस्य वर्णभाक् मु० । 3. विरामयेत् मु० ।