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षड्विंशतितमोऽध्यायः नागाने वेश्मन: सालो यः स्वप्ने 'चरते नरः।
सोऽचिराद् वमते लक्ष्मी क्लेशं चाप्नोति दारुणम् ।।40॥ जो व्यक्ति श्रेष्ठ महल के परकोटे पर चढ़ता हुआ देखे वह श्रेष्ठ लक्ष्मी का त्याग करता है, भयंकर कष्ट उठाता है ।।40॥
दर्शनं ग्रहणं भग्नं शयनासनमेव च ।
प्रशस्तमाममांसं च स्वप्ने वृद्धिकरं हितम् ॥1॥ स्वप्न में कच्चा मांस का दर्शन, ग्रहण, भग्न तथा शयन, आसन करना हितकर और प्रशस्त माना गया है ।।41॥
पक्वमांसस्य घासाय भक्षणं ग्रहणं तथा।
स्वप्ने व्याधिभयं विन्द्याद् भद्रबाहुवचो यथा ॥42॥ स्वप्न में पक्व मांस का दर्शन, ग्रहण और भक्षण व्याधि, भय और.कष्टोत्पादक माना गया है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।42।।
छर्दने मरणं विन्द्यादर्थनाशो विरेचने ।
क्षत्रो यानाद्यधान्यानां ग्रहणे मार्गमादिशेत् ॥43॥ स्वप्न में वमन करना देखने से मरण, विरेचन-दस्त लगना देखने से धन नाश, यान आदि के छत्र को ग्रहण करने से धन-धान्य का अभाव होता है ।।43।।
मधुरे निवेशस्वप्ने दिवा च यस्य वेश्मनि ।
तस्यार्थनाशं नियतं मृति वाऽभिनिदिशेत् ।।44॥ दिन के स्वप्न में जिसके घर में प्रवेश करता हुआ देखे, उसका धन नाश निश्चित होता है अथवा वह मृत्यु का निर्देश करता है ॥44।।
यः स्वप्ने गायते हसते नत्यते पठते नरः।
गायने रोदनं विन्द्यात् नर्तने वध-बन्धनम् ॥45॥ जो व्यक्ति स्वप्न में गाना, हँसना, नाचना और पढ़ना देखता है उसे गाना देखने में रोना पड़ता है और नाचना देखने से वध-बन्धन होता है ।।45।।
हसने शोचनं ब्रूयात् कलहं पठने तथा। बन्धने स्थानमेव स्यात् "मुक्तो देशान्तरं व्रजेत् ॥46॥
1. पराग्र (वरान ) मु० । 2. वदते मु० । 3. नृत्यते मु० 4. मुक्तो मु० । 5. वदेत्
मु०।