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भद्रबाहुसंहिता
ग्रह और नक्षत्रों के शुभाशुभ योग से धान्य और वस्त्रों के भावों की तेजीमन्दी को भद्रबाहु स्वामी ने कहा है ।।50।।
इति नम्रन्थे भद्रबाहुनिमित्त संग्रहयोगार्घकाण्डो नाम पंचविंशतितमोऽध्यायः ।।25।।
विवेचन तेजी-मन्दी जानने के अनेक नियम हैं। ग्रहों की स्थिति, उनका मार्गी होना या वक्री होना तथा उनकी ध्र वाओं पर से तेजी-मन्दी का ज्ञान करना, आदि प्रक्रियाएं प्रचलित हैं। इस संहिताग्रन्थ में ग्रहों की स्थिति पर से वस्तुओं की तेजी-मन्दी का साधारण विचार किया गया है । बारह महीनों की तिथि, वार, नक्षत्र के सम्बन्ध से भी तेजी-मन्दी का विचार 'वर्ष प्रबोध' नामक ग्रन्थ में विस्तार से किया गया है। यहाँ संक्षेप में कुछ प्रमुख योगों का निरूपण किया जायगा।
द्वादश पूर्णमासियों का विचार-चैत्र की पूर्णमासी को निर्मल आकाश हो तो किसी भी वस्तु से लाभ की सम्भावना नहीं रहती है। यदि इस दिन ग्रहण, भूकम्प, विद्युत्पात, उल्कापात, केतूदय और वृष्टि हो तो धान्य का संग्रह करना चाहिए। गेहूँ, जौ, चना, उड़द, मूंग, सोना, चांदी आदि पदार्थों में इस पूर्णिमा के सातवें महीने के उपरान्त लाभ होता है। वैशाखी पूर्णिमा को आकाश के स्वच्छ रहने पर सभी वस्तुएं तीन महीनों तक सस्ती होती हैं। गेहूं, चना, वस्त्र, सोना आदि का भाव प्रायः सम रहता है। बाजार में अधिक घटा-बढ़ी नहीं होती। यदि इस पूर्णिमा को चन्द्र परिवेष, उल्कापात, विद्य त्पात, भूकम्प, वृष्टि, केतूदय या अन्य किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो धान्य के साथ कपास, वस्त्र, रूई आदि पदार्थ तेज होते हैं । जूट का भाव भी ऊंचा उठता है। गेहूं, मूंग, उड़द, चना का संग्रह भाद्रपद मास में ही लाभ देता है। सभी प्रकार के अन्नों का संग्रह लाभ देता है। चावल, जौ, अरहर, कांगुनी, कोदो, मक्का आदि अनाजों में दुगुना लाभ होता है। सोने, चांदी, माणिक्य, मोती इन पदार्थों का मूल्य कुछ नीचे गिर जाता है। वैशाखी पूर्णिमा की मध्यरात्रि में जोर से बिजली चमके
और थोड़ी-सी वर्षा होकर बन्द हो जाय तो आगामी माघ मास में गुड़ के व्यापार में अच्छा लाभ होता है । अनाज के संग्रह में भी लाभ होता है । इस पूर्णिमा के प्रातःकाल सूर्योदय के समय बादल दिखलायी पड़ें तथा आकाश में अन्धकार दिखलायी पड़े तो अगहन महीने में घी और अनाज में अच्छा लाभ होता है । यों तो सभी महीनों में उक्त पदार्थों में लाभ होता है, किन्तु घी, अनाज और गुड़चीनी में अच्छा लाभ होता है । वैशाखी पूर्णिमा को स्वाति नक्षत्र का चतुर्थ चरण हो तथा शनिवार या रविवार हो तो उस वर्ष व्यापारियों को लाभ के साथ हानि भी होती है। बाजार में अनेक प्रकार की घटा-बढ़ी चलती है। ज्येष्ठ