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षड्विंशतितमोऽध्यायः सौभाग्यमर्थं लभते लिंगच्छेदात् स्त्रियं नरः ।
भगच्छेदे तथा नारी पुरुषं प्राप्नुयात् फलम् ॥16॥ जो व्यक्ति स्वप्न में सूर्य या चन्द्रमा का स्पर्श करता हुआ देखता है अथवा शत्रु सेनापति को मारकर श्मशान भूमि में निर्भीक घूमता हुआ देखता है वह व्यक्ति सौभाग्य और धन प्राप्त करता है। लिंगच्छेद होना देखने से पुरुष को स्त्री की प्राप्ति तथा भगच्छेद होना देखने से स्त्री को पुरुष की प्राप्ति होती है ।।15-16।।
शिरो वा छिद्यते यस्तु सोऽसिना छिद्यतेऽपि वा।
सहनलाभं जानीयाद् भोगांश्च विपुलान् नृपः ॥17॥ जो राजा स्वप्न में शिर कटा हुआ देखता है अथवा तलवार के द्वारा छेदित होता हुआ देखता है, वह सहस्रों का लाभ तथा प्रचुर भोग प्राप्त करता है ।। 17।।
धनुरारोहते यस्तु विस्फारण-समार्जने।
अर्थलाभं विजानीयात् जयं युधि रिपोर्वधम् ॥18॥ जो राजा स्वप्न में धनुष पर बाण चढ़ना, धनुष का स्फालन करना, प्रत्यंचा को समेटना आदि देखता है, वह अर्थलाभ करता है, युद्ध में जय और शत्रु का बध होता है ॥18॥
द्विगाढं हस्तिनारूढः शुक्लो 'वाससलंकृतः ।
यः स्वप्ने जायते भीत: समृद्धि लभते सतीम् ॥19॥ जो स्वप्न में शुक्ल वस्त्र और श्रेष्ठ आभूषणों से अलंकृत होकर हाथी पर चढ़ा हुआ भीत-भयभीत देखता है, वह समृद्धि को प्राप्त होता है ।। 19।।
देवान् साधु-द्विजान् प्रेतान् स्वप्ने पश्यन्ति 'तुष्टिभिः ।
सर्वे ते सुखमिच्छन्ति विपरीते विपर्ययः ॥20॥ जो स्वप्न में सन्तोष के साथ देव, साधु, ब्राह्मणों को और प्रेतों को देखते हैं, वे सब सुख चाहते हैं-सुख प्राप्त करते हैं और विपरीत देखने पर विपरीत फल होता है अर्थात् स्वप्न में उक्त देव-साधु आदि का क्रोधित होना देखने से उल्टा फल होता है ।।20।
गृहद्वारं विवर्णमभिज्ञाद्वा यो गृहं नरः।
व्यसनान्मुच्यते शीघ्र स्वप्नं दृष्ट्वा हि तादृशम् ॥21॥ जो व्यक्ति स्वप्न में गृहद्वार या गृह को विवर्ण देखे या पहिचाने वह शीघ्र
1. समलंकृतः मु० । 2. पुष्टिभिः मु० । ३. रोहिता मु० ।