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भद्रबाहुसंहिता
ही विपत्ति से छुटकारा प्राप्त करता है ।।21।।
प्रपानं यः पिबेत् पानं बद्धो वा योऽभिमुच्यते ।
विप्रस्य सोमपानाय शिष्याणामर्थवृद्धये ॥22॥ यदि स्वप्न में शर्बत या जल को पीता हुआ देखे अथवा किसी बंधे हुए व्यक्ति को छोड़ता हुआ देखे तो इस स्वप्न का फल ब्राह्मण के लिए सोमपान और शिष्यों के लिए धनवृद्धिक र होता है ।। 22।।
निम्नं कपजलं छिद्रान् यो भीतः स्थलमारहेत।
स्वप्ने स वर्धते सस्य-धन-धान्येन मेधसा ॥23॥ जो व्यक्ति स्वप्न में नीचे कुएं के जल को, छिद्र को और भयभीत होकर स्थल पर चढ़ता हुआ देखता है वह धन-धान्य और बुद्धि के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होता है ।।23।।
श्मशाने शुष्कदारुं वा वल्लि शुष्कद्र मं तथा।
'यूपं च मारुहेश्वऽस्तु स्वप्ने व्यसनमाप्नुयात् ॥24॥ जो व्यक्ति स्वप्न में श्मशान में सूखे वृक्ष, लता एवं सूखी लकड़ी को देखता है अथवा यज्ञ के खूटे पर जो अपने को चढ़ता हुआ देखता है, वह विपत्ति को प्राप्त होता है ।।24।।
वपु-सोसायसं रज्जु नाणकं मक्षिका 'मधुः ।
यस्मिन् स्वप्ने प्रयच्छन्ति मरणं तस्य ध्र वं भवेत् ॥25॥ जो व्यक्ति स्वप्न में शीशा, रांगा, जस्ता, पीतल, रज्ज, सिक्का तथा मधु का दान करता हुआ देखता है, उसका मरण निश्चय होता है ।।25।।
अकालजं फलं पुष्पं काले वा यज्च 'गर्भितम् ।
यस्मै स्वप्ने प्रदीयेते तादृशायासलक्षणम् ॥26॥ जिस स्वप्न में असमय के फल-फूल या समय पर होने वाले निन्दित फलफूलों को जिसको देते हुए देखा जाय वह स्वप्न आयास लक्षण माना जाता है ।।26।।
अलक्तकं वाऽथ रोगो वा निवातं यस्य वेश्मनि । गृहदाघमवाप्नोति चौरैर्वा शस्त्रघातनम् ॥27॥
1. यूपे वा योऽघिल्ड: स्यात् मु० । 2. -युतम् मु० । 3. तस्यासी ध्र वो मु. + गर्हितम् मु। 5. नदस्यायामलक्षणम् मु.।