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भद्रबाहुसंहिता
तिर्यङ मुख संज्ञक-अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, ज्येष्ठा और अश्विनी तिर्यङ मुख संज्ञक हैं।
दग्धसंज्ञक नक्षत्र--रविवार को भरणी, सोमवार को चित्रा, मंगलवार को उत्तराषाढ़ा, बुधवार को धनिष्ठा, बृहस्पतिवार को उत्तराफाल्गुनी, शुक्रवार को ज्येष्ठा और शनिवार को रेवती दग्धसंज्ञक है।
मास शून्य नक्षत्र–चैत में रोहिणी और अश्विनी, वैशाख में चित्रा और स्वाति, ज्येष्ठ में उत्तरापाढ़ा और पुष्य, आषाढ़ में पूर्वाफाल्गुनी और धनिष्ठा, श्रावण में उत्तरापाढ़ा और श्रवण, भाद्रपद में शतभिषा और रेवती, आश्विन में पूर्वाभाद्रपद, कात्तिक में कृत्तिका और मघा, मार्गशीर्ष में चित्रा और विशाखा, पौष में आर्द्रा, अश्विनी और हस्त, माघ में श्रवण और मूल एवं फाल्गुन में भरणी और ज्येष्ठा शून्य नक्षत्र हैं ।
संक्रान्ति प्रवेश के दिन नक्षत्र का स्वभाव और संज्ञा अवगत करके वस्तु की तेजी-मन्दी जाननी चाहिए । यदि संक्रान्ति का प्रवेश तीक्ष्ण, दग्ध या उग्र संज्ञक नक्षत्र में होता है, तो सभी वस्तुओं की तेजी समझनी चाहिए। मृदु और ध्र व संज्ञक नक्षत्रों में संक्रान्ति का प्रवेश होने से समान भाव रहता है। दारुण संज्ञक नक्षत्र में संक्रान्ति का प्रवेश होने से खाद्यान्नों का अभाव रहता है, सभी अन्य उपभोग की वस्तुएं भी उपलब्ध नहीं हो पाती।
संक्रान्ति जिस वाहन पर रहती है, जो वस्तु धारण करती है, जिस वस्तु का भक्षण करती है, उस वस्तु की कमी होती है तथा वह वस्तु महंगी भी होती है । अत: संक्रान्ति के वाहनचक्र से भी वस्तुओं की तेजी-मन्दी जानी जा सकेगी।
रवि नक्षत्र फल-अश्विनी में सूर्य के रहने से सभी अनाज, सभी रस, वस्त्र, अलसी, एरण्ड, तिल, मेथी, लालचन्दन, इलायची, लौंग, सुपारी, नारियल, कपूर, हींग, हिंगलु आदि तेज होते हैं । भरणी में सूर्य के रहने से चावल, जौ, चना, मोठ, अरहर, अलसी, गुड़, घी, अफीम, मंग आदि पदार्थ तेज होते हैं । कृत्तिका में श्वेत पुष्प, जौ, चावल, गेहूं, मूंग, मोठ, राई और सरसों तेज होते हैं। रोहिणी में चावल आदि सभी धान्य, अलसी, सरसों, राई, तेल, दाख, गुड़, खांड़, सुपारी, रुई, सूत-जूट आदि पदार्थ तेज होते हैं । मृगशिरा में सूर्य के रहने से जलोत्पन्न पदार्थ नारियल, सर्वफल, रुई, सूत, रेशम, वस्त्र, कपूर, चन्दन, चना आदि पदार्थ तेज होते हैं । आर्द्रा में रवि के रहने से घी, गुड़, चीनी, चावल, चन्दन, लाल नमक, कपास, रूई, हल्दी, सोंठ, लोहा, चाँदी आदि पदार्थ तेज होते हैं । पुनर्वसु नक्षत्र में रहने से उड़द, मूंग, मोठ, चावल, मसूर, नमक, सज्जी, लाख, नील, सिल, एरण्ड, माँजुफल, केशर, कपूर, देवदारु, लौंग, नारियल, श्वेत वस्तु आदि पदार्थ महंगे होते हैं । पुष्य नक्षत्र में रवि के रहने से तिल, तेल, मद्य, गुड़, ज्वार, गुग्गुल, सुपाड़ी, सोंठ, मोम, हींग, हल्दी, जूट, ऊनी वस्त्र, शीशा, चाँदी आदि वस्तुएँ तेज होती हैं।