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अष्टादशोऽध्यायः
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गुरोः शुक्रस्य भौमस्य वीथीं विन्द्याद् यथा बुध: ।
दीप्तोऽतिरूक्ष: सङग्रामं तदा घोरं निवेदयेत् ॥14॥ जब बुध ग्रह गुरु, शुक्र और मंगल की वीथि को प्राप्त होता है तब अत्यन्त रूक्ष और दीप्त होता है, अतः घोर संग्राम होता है ।।14।।
भार्गवस्योत्तरां वीथीं चन्द्रशृङ्ग च दक्षिणम् । बुधो यदा निहन्यात्तानुभयोदक्षिणापथे ॥15॥ राज्ञां चक्रधराणां च सेनानां शस्त्रजीविनाम् ।
पौर-जनपदानां च क्रिया काचिन्न सिध्यति ॥16॥ यदि शुक्र उत्तरा-वीथि में हो और चन्द्रशृग दक्षिण की ओर हो तथा उनको दक्षिण मार्ग में बुध घातित करे तो राजा, चक्रधर ---- शासक, सेना, शस्त्र से आजीविका करने वाले, पुरवासी और नागरिकों की कोई भी क्रिया सिद्ध नहीं होती है ।।15-16॥
शुक्रस्य दक्षिणां वीथीं चन्द्रशृंगमधोत्तरम् ।
भिन्द्याल्लिखेत् तदा सौम्यस्ततो 'राज्याग्निजं भयम् ॥17॥ शुक्र यदि दक्षिण वीथि में हो और चन्द्रशृग नीचे की ओर उत्तर तरफ हो तथा बुध इनका भेदन कर स्पर्श करे तो उस समय राज्य और अग्नि का भय होता है ।।17॥
यदा बुधोऽरुणाभ: स्यादुर्भगो वा निरीक्ष्यते ।
तदा स स्थावरान् हन्ति ब्रह्म-क्षत्रं च पीडयेत् ॥18॥ जब बुध अरुण क्रान्ति वाला हो अथवा दुर्भग-कुरूप दिखलाई पड़ता हो तो स्थावर-नागरिकों का विनाश करता है और ब्राह्मण और क्षत्रियों को पीड़ित करता है ॥18॥
चान्द्रस्य दक्षिणां वीथीं भित्वा तिष्ठेद् यो ग्रहः । रूक्ष: स कालसंकाशस्तदा चित्रविनाशनम् ॥19॥ चित्रमूत्तिश्च चित्रांश्च शिल्पिनः कुशलांस्तथा।
तेषां च बन्धनं कुर्यात् मरणाय समोहते ॥20॥ जब कोई ग्रह बुध की दक्षिण वीथि का भेदन करे तथा वह रूक्ष दिखलाई
1. श्चोत्तरां मु० । 2. -जान० मु०। 3. शुक्रस्तु मु० । 4. रोगाग्निजं भयम् मु० । 5. स्यादुच्चगो वा मु०।