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भद्रबाहुसंहिता
जब मध्य रात्रि में राहु चन्द्रमा को ग्रस्त करता है तब वैश्यों के लिए भय होता है ||4||
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नीचावलम्बी सोमस्तु यदा गृह्येत राहुणा । सूर्पाकारं तदाऽऽनतं मरुकच्छं च पीडयेत् ॥47॥
नीच राशिस्थ चन्द्रमा --- वृश्चिक राशिस्थ चन्द्रमा को जब राहु ग्रस्त करता है तो सूर्पाकार, आनर्त्त, मरु और कच्छ देशों को पीड़ित करता है ||47|
अल्पचन्द्रं च द्वीपाश्च म्लेच्छाः पूर्वापरा द्विजाः । दीक्षिताः क्षत्रियामात्याः शूद्राः पीडामवाप्नुयुः ॥48॥
यदि अल्पचन्द्र का ग्रहण हो तो म्लेच्छ आदि द्वीप, पूर्व-पश्चिम निवासी द्विज, मुनि-साधु, क्षत्रिय, अमात्य और शूद्र पीड़ा को प्राप्त होते हैं | 48 ||
यतो राहूग्रंसेच्चन्द्र' ततो यात्रां निवेशयेत् । वृत्ते निवर्तते यात्रा यतो तस्मान्महद् भयम् ॥49॥
जब राहु द्वारा चन्द्रग्रहण होता है तो यात्रा में रुकावट समझना चाहिए । चन्द्रग्रहण के दिन यात्रा करने वाला व्यक्ति यों ही वापस लौट आता है, अतः यात्रा में भय है ||49॥
गृहणीयादेकमासेन चन्द्र-सूर्यो यदा तदा ।
रुधिरवर्णसंसक्ता सङ्ग्रामे जायते मही ॥50॥
जब एक ही महीने में चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण दोनों हों तो पृथ्वी पर युद्ध होता है और पृथ्वी रक्तरंजित हो जाती है || 50
चौराश्च यायिनो म्लेच्छा घ्नन्ति साधूननायकान् । विरुध्यन्ते गणाश्चापि नृपाश्च विषये चराः ॥51॥
उक्त दोनों ग्रहणों के होने पर वे चोर, यायी, म्लेच्छ, नेतृत्वविहीन साधुओं का घात करते हैं तथा देश-विशेष में दूत, राजा और गणों को रोक लिया जाता
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'यतोत्साहं तु हत्वा तु राजानं निष्क्रमते शशी । तदा क्षेमं सुभिक्षञ्च मन्दरोगांश्च निर्दिशेत् ॥52॥ चन्द्रमा पहले राहु को परास्त कर निकल आये तो क्षेम, सुभिक्ष तथा रोगों की मन्दता होती है || 52 |
1. यह श्लोक मुद्रित प्रति में नहीं है ।