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भद्रबाहुसंहिता
अंगान् सौराष्ट्रान् समुद्रान् भरुकच्छादसेरकान् । शूव्रान् हृविजलरुहान् केतुर्हन्याद्विपथगः ॥36॥
यदि विपथग --- कुमार्ग स्थित केतु हो तो अंग, सौराष्ट्र, समुद्र, भरुकच्छ, असेरक, शूत्र, हृषिकेश आदि देशों का विनाश करता है ||36||
काम्बोजान् रामगान्धारान् आभीरान् यवरच्छकान् । चैत्रसोत्रेयकान सिन्धु महामन्य युवायुजः ॥37॥ बाह्लीकान, वीनविषयान् पर्वतांश्चाप्यदुस्वरान् । सौधेयं कुरुवदेहान केतु र्हन्याद्यदुत्तरान ॥38॥
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केतु उत्तर दिशा में स्थित कम्बोज, रामगान्धार, आभीर, यवरच्छक, चैत्रसौत्रेय, सिन्धु, बाह्लीक, वीनविषय, पहाड़ी प्रदेश, सौन्धेय, कुरु, विदेह आदि देशों का घात करता है | 37-38॥
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चर्मासुवर्ण लिंगान किरातान बर्बरान् द्विजान् । वैदिस्तमिपुलिन्दांश्च हन्ति स्वात्यां समुच्छ्रितः ॥39॥
स्वाती नक्षत्र में उदित केतु चर्मकार, स्वर्णकार, कलिंग देशवासी, किरात, बर्बर जातियाँ, द्विज, वैदिक, भील, पुलिन्द आदि जातियों का वध होता है || 39 ॥
सदृशा: केतवो हन्युस्तासु मध्ये वधं वदेत् ।
व्याधि शस्त्रं क्षुधां मृत्युं परचक्रं च निर्दिशेत् ॥40॥
सदृश केतु घात करते हैं तथा व्याधि, शस्त्र, क्षुधा, मृत्यु और परशासन की सूचना देते हैं | 401
न काले नियता केतुः न नक्षत्रादिकस्तथा । आकस्मिको भवत्येव कदाचिदुदितो ग्रहः ॥ 41m
केतु के उदयास्त का समय निश्चित नहीं है और नक्षत्र, दिशा आदि भी अनिश्चित ही हैं । अकस्मात् कदाचित् ग्रह का उदय हो जाता है ॥ 4 1 ॥
षट्त्रिंशत् तस्य वर्षाणि प्रवासः परमः स्मृतः । मध्यमः सप्तविंशं तु जघन्यस्तु त्रयोदश ॥42॥
केतु का 36 वर्ष का उत्कृष्ट प्रवास, 27 वर्ष का मध्यम प्रवास और तेरह वर्ष का जघन्य प्रवास होता है | 42 ॥
1. सुराष्ट्रान् म्० । 2. सात्यां मु० । 3. वेणु मु० ।