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चतुर्विशतितमोऽध्यायः
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चन्द्रनामधारी, चन्द्रभक्त तथा इन्हीं के समान अन्य व्यक्ति पीड़ित भी होते हैं तथा ब्राह्मण, चन्द्रनक्षत्र और चन्द्र राशि वाले, उदीच्य और पांचाल भी पीड़ित होते हैं ॥12-13॥
बर्बराश्च किराताश्च पुलिन्दा द्रमिलास्तथा। मालवा मलया बंगा: कलिंगाः पार्वतास्तथा ॥14॥ सूर्यकाश्च सुराः क्षद्रा: पिशाचा वनवासिनः।
तन्नामधेयास्तद्भक्ता: पीड्यन्ते राहुघातने ॥15॥ राहु के घात में बर्बर, किरात, पुलिन्द, द्रमिल, मालव, मलय, बंग, कलिंग, पार्वत, सूर्यक, देव, क्षुद्र, पिशाच, वनवासी, राहु नामधारी और राहु भक्त व्यक्ति पीड़ित होते हैं ।14-15।।
यायिनः ख्यातया: सस्यः सोरठा द्रविडास्तथा। अंगा बंगाः कलिंगाश्च सौरसेनाश्च क्षत्रिया: ॥16॥ वीराश्चोग्राश्च भोजाश्च यज्ञे चन्द्रश्च साधवः ।
पोड्यन्ते शुकघातेन संग्रामश्चाकुलो भवेत् ॥17॥ शुक्र घात-युद्ध से यायी, यशस्वी, शाल्व, द्रविड, अंग, बंग, कलिंग, सौरसेन क्षत्रिय, वीर, उग्र, भोज, साधु, चन्द्रवंशी पीड़ित होते हैं तथा युद्ध और व्याकुलता व्याप्त होती है ॥16-17॥
श्वेतः श्वेतं ग्रहं यत्र हन्यात् सुवर्चसा' यदा।
नागराणां मिथो भेदो विप्राणां तु भयं भवेत् ॥18॥ जब श्वेत ग्रह श्वेत ग्रह को अपनी शक्ति द्वारा घातित करे तब नागरिकों में परस्पर भेद एवं ब्राह्मणों को भय होता है ।।18।।
लोहितो लोहितं हन्यात् यदा ग्रहसमागमे ।
नागराणां मिथो भेद: क्षत्रियाणां भयं भवेत् ॥19॥ ग्रहयुद्ध में यदि लोहितग्रह लोहित ग्रह का घात करे तो नागरिकों में परस्पर भेद एवं क्षत्रियों को भय होता है ॥19॥
पीतः पीतं यदा हन्याद् ग्रहं ग्रहसमागमे । वैश्यानां नागराणां च मिथो भेदं तदाऽऽदिशेत् ॥20॥
1. सूर्पकाश्च मु० । 2 सोलषा द्रमिलास्तथा मु० । 3. सुप्रतिसो मु० । 4. ब्राह मणानां मु० । 5. नागराणां तु निर्दिशेत् मु० । 6. क्षत्रियाणां मु० । 7. नागराणां तु निर्दिशेत् मु० ।