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भद्रबाहुसंहिता
शनैश्चरश्च नीलाभः सोमः पाण्डुर उच्यते । बहुवर्णो रविः केतू राहुनक्षत्र एव च ॥34॥
शुक्र शंख वर्ण के समान, बृहस्पति कुछ पीला, मंगल प्रवाल के समान और बुध वरुण के समान, शनैश्चर नील, चन्द्रमा पाण्डु, रवि-केतू अनेक वर्ण एवं राहु नक्षत्र के समान वर्ण वाला होता है ।133-34।।
उदकस्य प्रभुः शुत्रः सस्यस्य च बृहस्पतिः । लोहित: सुख-दु:खस्य केतुः पुष्प फलस्य च ॥35॥ बुधस्तु बल - वित्तानां सर्वस्य च रविः स्मृतः । उदकानां च वल्लीनां शशांकः प्रभुरुच्यते ॥36॥
जल का स्वामी शुक्र, धान्य का स्वामी बृहस्पति, सुख-दुःख का स्वामी मंगल, फल-पुष्प का स्वामी केतु, बल-धन का स्वामी बुध, सभी वस्तुओं का स्वामी सूर्य एवं लताओं और वृक्षों का स्वामी चन्द्रमा है ।। 35-3611
धान्यस्यार्थं तु नक्षत्रं तथाऽऽरः शनिः सर्वश: । प्रभुर्वा सुख-दुःखस्य सर्वे ह्येते त्रिदण्डवत् ॥37॥
धान्य के लिए जो नक्षत्र होता है, उसका सभी तरह से स्वामी राहु है, और सुख-दुःख का स्वामी शनि है । ये ग्रह त्रिदण्डवत् होते हैं ॥37॥
वर्णानां संकरो विन्द्याद् द्विजातीनां भयंकरम् । स्वपक्षे परपक्षे च चातुर्वर्ण्य विभावयेत् ॥38॥
जब ग्रहों का युद्ध होता है तो वर्णों का सम्मिश्रण, द्विजातियों को भय तथा स्वपक्ष और परपक्ष में चातुर्वर्ण्य दिखलायी पड़ता है ॥38॥
वातः श्लेष्मा गुरुर्ज्ञेयश्चन्द्रः शुक्रस्तथैव च । 'वातिको केतु-सौरौ तु पैत्तिको भौम उच्यते ॥39॥
चन्द्र, शुक्र और गुरु वात और कफ प्रकृति वाले हैं, केतु और शनि भी वात प्रकृति वाले हैं तथा मंगल पित्त प्रकृति वाला है ॥39॥
पित्तश्लेष्मान्तिक: सूर्यो नक्षत्रं देवता भवेत् । राहुस्तु भौमो विज्ञेयौ प्रकृतौ च शुभाशुभौ ॥40॥
सूर्य पित्त श्लेष्मा -पित्त-कफ प्रकृति वाला है । यह नक्षत्रों का देवता होता है । राहु और मंगल शुभाशुभ प्रकृति वाले हैं ॥40॥
1. दोकान्दनां मु० । 2. शनिश्च मु० । 3. विभाव्यते मु० । 4. वातिको बुध - मु० ।