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द्वाविंशतितमोऽध्यायः
यदि थाली- पिठर -- गोल थाली और मूढ़े के आकार में सूर्य उदयकाल में दिखलायी पड़े तो मनुष्यों को सुभिक्ष और धन-लाभ करानेवाला है। राज्य के लिए भी धनलाभ करानेवाला होता है । पीढ़ा के समान सूर्य दिखलायी पड़े तो मृत्युप्रद होता है ।। 150
सुवर्णवर्णो वर्ष वा मासं वा रजतप्रभ । शस्त्रं शोणितवत् सूर्यो दाघो वैश्वानरप्रभे ॥16॥
स्वर्ण के समान रंग का सूर्य उदयकाल में दिखलायी पड़े या रजत के समान वर्ण का सूर्य दिखलायी पड़े तो वर्ष या मास सुखमय व्यतीत होते हैं । रक्त वर्ण के समान सूर्य दिखलायी पड़े तो शस्त्र पीड़ा और अग्नि के समान दिखलायी पड़े तो दग्ध करनेवाला होता है || 6||
शृंगी राज्ञां विजयदः कोश - वाहनवृद्धये ।
चित्रः सस्यविनाशाय भयाय च रविः स्मृतः ॥17॥
श्रृंगी वर्ण का रवि राजाओं के लिए विजय देने वाला, कोश और वाहन की वृद्धि करने वाला होता है । चित्रवर्ण का रवि धान्य का विनाश करता है और भयोत्पादक होता है | 17।।
अस्तंगते यदा सूर्ये चिरं रक्ता वसुन्धरा । सर्वलोकभयं विन्द्यात् तदा वृद्धानुशासने ॥18॥
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जब सूर्य के अस्त होने पर पृथ्वी बहुत समय तक रक्तवर्ण की दिखलायी पड़े तो सर्वलोक को भय होता है ॥18॥
उदयास्तमने ध्वस्ते' यदा वै कुरुते रविः ।
महाभयं तदानीके सुभिक्षं क्षेममेव च ॥19॥
उदय और अस्तकाल को जब सूर्य ध्वस्त करे तो सेना में महान् भय होता है तथा सुभिक्ष और कल्याण होता है ॥19॥
एतान्येव तु लिंगानि पर्वण्यां चन्द्र-सूर्ययोः ।
तदा राहुरिति ज्ञेयो विकारश्च न विद्यते ॥20॥
यदि चन्द्रमा और सूर्य के पूर्वकाल – पूर्णमासी या अमावस्या में उक्त चिह्न दिखलायी पड़े तो राहु समझना चाहिए, इसमें विकार नहीं होता है || 201
1. ध्वस्तो मु० ।