________________
394
भद्रबाहुसंहिता राजा 'चावनिजा गर्भा नागरा दारुजीविनः। गोपा गोजीविनश्चापि धनुस्सङ ग्रामजीविनः ॥46॥ तिला: कुलस्था माषाश्च माषा मुद्गाश्चतुष्पदाः।
पीड्यन्ते बुधघातेन स्थावरं यश्च किञ्चन ।।47॥ चन्द्रमा के द्वारा बुध के घातित होने से राजा, खान से आजीविका करने वाले, नागरिक, काष्ठ से आजीविका करने वाले, गोप, गायों से आजीविका करने वाले, धनुष और सेना से आजीविका करने वाले, तिल, कुलथी, उड़द, मूंग, चतुष्पद और स्थावर पीड़ित होते हैं ।।46-47॥
कनकं मणयो रत्नं शकाश्च यवनास्तथा। गुर्जरा पह्नवा मुख्या: क्षत्रिया मन्त्रिणो बलम् ॥48॥ स्थावरस्य वनीकाकुनये सिंहला नृपाः ।
वणिजां वनशख्यं च पोड्यन्ते सूर्यघातने ॥49॥ सूर्य के घात से कनक-सोना, मणि, रत्न, शक, यवन, गुहार, पह्नव आदि मुख्य क्षत्रिय, मन्त्री, सेना, स्थावरों के अन्तर्गत सिंहल, वणिज और वनशाखा वाले पीड़ित होते हैं ।।48-49॥
पौरेयाः शरसेनाश्च शका बालीकदेशजा:। मत्स्याः कच्छाश्च वस्याश्च सौवीरा गन्धिजास्तथा ॥50॥ पीड्यन्ते केतुघातेन ये च सरवास्तथाश्रयाः।
निर्घाता पापवर्ष वा विज्ञेयं बहुशस्तथा ॥1॥ केतु घात द्वारा पुरवासी, शूरसेन, शक, बाह्रीक, मत्स्य, कच्छ, वत्स्य, सौवीर गन्धिज आदि देश वाले पीड़ित होते हैं तथा यह अनेक प्रकार से संघर्षमय पाप वर्ष रहता है ।।50-510
पाण्ड्याः केरलाश्चोलाः सिंहलाः साविकास्तथा। कुनपास्ते तथार्याश्च मूलका वनवासकाः॥52॥ किष्किन्धाश्च कुनाटाश्च प्रत्यग्राश्च वनेचराः।
रक्तपुष्पफलांश्चैव रोहिण्यां सूर्य-चन्द्रयोः ॥53॥ पाण्ड्य, केरल, चोल, सिंहल, साविक, कुनप, विदर्भ, वनवासी, किष्किन्धा, कुनाट, वनचर, रक्तपुष्प और फल आदि विकृत सूर्य और चन्द्र के संयुक्त होने से
___1. या चावनिजा मु० । 2. गुहारा: मु० । 3. सौधिकास्तथा मु० । 4. कुपनास्ते मु० ।