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भद्रबाहुसंहिता
है तब पाप चन्द्रमा कहलाता है। पाप चन्द्रमा जगत् में भय उत्पन्न करता है, परन्तु विशाखा, अनुराधा और मघा नक्षत्र के मध्य भाग में चन्द्रमा के रहने से शुभ फल होता है। रेवती से लेकर मृगशिरा तक छ नक्षत्र अनागत होकर मिलते हैं, आर्द्रा से लेकर अनुराधा तक बारह नक्षत्र मध्य भाग में चन्द्रमा के साथ मिलते हैं तया ज्येष्ठा से लेकर उत्तराभाद्रपद तक नौ नक्षत्र अतिक्रान्त होकर चन्द्रमा के साथ मिलते हैं । यदि चन्द्रमा का शृंग कुछ ऊंचा होकर नाव के समान विशालता को प्राप्त करे तो नाविकों को कष्ट होता है । आधे उठे हुए चन्द्रमा शृग को लांगल कहते हैं, उससे हलजीवी मनुष्यों को पीड़ा होती है। प्रबन्धकों, शासकों और नेताओं में परस्पर मैत्री सम्बन्ध बढता है तथा देश में सूभिक्ष होता है। चन्द्रमा का दक्षिण शृग आधा उठा हुआ हो तो उसे दुष्ट लांगल शृग कहते हैं, इसका फल पाण्ड्य, चेर, चोल आदि राज्यों में पारस्परिक अनक्य होता है । इस प्रकार के शृग के दर्शन से वर्षा ऋतु में जलाभाव होता है तथा ग्रीष्म ऋतु में सन्ताप होता है। __ यदि समान भाव से चन्द्रमा का उदय हो तो पहले दिन की तरह सर्वत्र मुभिक्ष, आनन्द, आमोद-प्रमोद, वर्षा, हर्ष आदि होते हैं। दण्ड के समान चन्द्रमा के उदय होने पर गाय, बैलों को पीड़ा होती है और राजा लोग उग्र दण्डधारी होते हैं । यदि धनुष के आकार का चन्द्रमा उदय हो तो युद्ध होता है, परन्तु जिस ओर उस धनुष की मौर्वी रहती है, उस देश की जय होती है । यदि पदशृंग दक्षिण और उत्तर में फैला हुआ हो तो भूकम्प, महामारी आदि फल उत्पन्न होते हैं । कृषि के लिए उक्त प्रकार का चन्द्रमा अच्छा नहीं माना गया है। जिस चन्द्रमा का शृग नीचे को मुख किये हुए हो उसे आवर्तित शृंग कहते हैं, इससे मवेशी को कष्ट होता है। घास की उत्पत्ति कम होती है तथा हरे चारे का भी अभाव रहता है। यदि चन्द्रमण्डल के चारों ओर अखण्डित गोलाकार रेखा दिखलायी दे तो 'कुण्ड' नामक शृग होता है । इस प्रकार के शृग से देश में अशान्ति फैलती है तथा नाना प्रकार के उपद्रव होते हैं । यदि चन्द्रमा का शृग उत्तर दिशा की ओर कुछ ऊंचा हो तो धान्य की वृद्धि होती है, वर्षा भी उत्तम होती है। दक्षिण की ओर शृंग के कुछ ऊंचे रहने से वर्षा का अभाव, धान्य की कमी एवं नाना तरह की बीमारियां फैलती हैं।
एक शृंग वाला, नीचे की ओर मुख वाला, शृंगहीन अथवा सम्पूर्ण नये प्रकार का चन्द्रमा देखने से देखने वालों में से किसी की मृत्यु होती है। वैयक्तिक दृष्टि से भी उक्त प्रकार के चक्र,गों का देखना अनिष्टकर माना जाता है । यदि आकार से छोटा चन्द्रमा दिखलाई पड़े तो दुर्भिक्ष, मृत्यु, रोग आदि अनिष्ट फल घटते हैं तथा बड़ा चन्द्रमा दिखलाई पड़े तो सुभिक्ष होता है। मध्यम आकार के चन्द्रमा के उदय होने से प्राणियों को क्षुधा की वेदना सहन करनी पड़ती है । राजाओं,