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भद्रबाहुसंहिता
महाजनाश्च पीड्यन्ते क्षिप्रमैक्षुरकास्तथा । इतयश्चापि जायन्ते सप्तम्यां सोमपीडने ॥20॥
सप्तमी तिथि को चन्द्रमा के घातित होने पर महाधनिक, नाई, धोबी, कृषक आदि को पीड़ा होती है और ईतियाँ - बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं ॥20॥ विवर्णपरुषश्चन्द्रः स्त्रीणां राजा निषेवते ।
कपिलोsपि दक्षिणे मार्गे विन्द्यादग्निभयं तथा ' ॥21॥
किसी अन्य अशुभ ग्रह द्वारा विवर्ण और परुष, स्त्रियों - रोहिणी आदि का राजा पति - चन्द्रमा सेवन किया जाय तथा कपिल - पिंगलवर्ण का चन्द्रमा दक्षिण मार्ग में भी दिखलायी पड़े तो अग्निभय होता है ||21||
सन्ध्यायां कृत्तिकां ज्येष्ठां रोहिणीं पितृदेवताम् । चित्रां विशाखां मैत्रं च चरेद् दक्षिणतः शशी ॥22॥
सन्ध्या में कृत्तिका, ज्येष्ठा, रोहिणी, मघा, चित्रा, विशाखा और अनुराधा का चन्द्रमा दक्षिण मार्ग से विचरण करता है ||22||
सर्वभूतभयं विन्द्यात् तथा घोरं तु मांसिकम् । सस्यं वर्षं वर्धयते चन्द्रस्तद्वद् विपर्ययात् ॥23॥
चन्द्रमा के विपर्यय होने पर समस्त प्राणियों को भय होता है तथा धान्य और वर्षा की वृद्धि होती है ॥23॥
रेवती - पुष्ययोः सोमः श्रीमानुत्तरगो यदा । महावर्षाणि कल्पन्ते तदा कृतयुगे यथा ॥24॥
जब चन्द्रमा रेवती और पुष्य नक्षत्र में उत्तर दिशा में गमन करता है, उस समय कृतयुग के समान महावर्ष होते हैं | 24
गोवीथीमजवीथों वा वैश्वानरपथं तथा ।
विवर्ण: सेवते चन्द्रस तदाऽल्पमुदकं भवेत् ॥25॥
जब विवर्ण चन्द्रमा गोवीथि, अजवीथि या वैश्वानर पक्ष में गमन करता है, तब अल्प जल-वृष्टि होती है । 25।।
गजवीथ्यां नागवीथ्यां सुभिक्षं क्षेममेव च । सुप्रभे प्रकृतिस्थे च महावर्षं च निर्दिशेत् ॥26॥
1. महाधनाश्च मु० । 2. तदा मु० । 3. तदा मु० । 4. सदा मु० ।