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त्रयोविंशतितमोऽध्यायः
नृपा मृत्यैविरुध्यन्ते राष्ट्र चौरविलुण्ठ्यते । पूर्णिमायां हते चन्द्र ऋक्षे वा विकृतप्रभे ॥14॥ पूर्णिमा में चन्द्रमा द्वारा घात नक्षत्र पर चन्द्रमा के स्थित होने पर अथवा विकृत प्रभा वाले चन्द्रमा के होने पर राजा और सेवकों में विरोध होता है तथा चोरों के द्वारा राष्ट्र लूटा जाता है ॥14॥
ह्रस्वो रूक्षश्च चन्द्रश्च श्यामश्चापि भयावहः । स्निग्ध: शुक्लो महान् 1 श्रीमांश्चन्द्रो नक्षत्रवृद्धये ॥15॥
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ह्रस्व, रूक्ष और काला चन्द्र भयोत्पादक है तथा स्निग्ध, शुक्ल और सुन्दर चन्द्र सुखोत्पादक तथा समृद्धिकारक होता है ॥15॥
श्वेतः पीतश्च रक्तश्च कृष्णश्चापि यथाक्रमम् । सुवर्णसुखदश्चन्द्रो विपरीतो भयावहः ॥16॥
श्वेत, पीत, रक्त और कृष्ण ब्राह्मणादि चारों वर्णों के लिए सुखद यथाक्रम होता है और सुवर्ण - सुन्दर चन्द्र सभी के लिए सुखप्रद है । इसके विपरीत चन्द्र भयावह होता है ।।16।।
चन्द्र प्रतिपदि योऽन्यो ग्रहः प्रविशतेऽशुभः । संग्रामो जायते तत्र सप्तराष्ट्र विनाशनः ॥17॥
यदि प्रतिपदा तिथि को चन्द्रमा में अन्य अशुभ ग्रह प्रविष्ट हो तो भयंकर संग्राम होता है तथा सात राष्ट्रों का विनाश होता है ॥17॥
द्वितीयायां तृतीयायां गर्भनाशाय कल्पते ।
चतुर्थ्यां च सुघाती च मन्दवृष्टिञ्च निर्दिशेत् ॥18॥ द्वितीया, तृतीया तिथि को चन्द्रमा में अन्य अशुभ ग्रह प्रविष्ट हो तो गर्भनाश करने वाला होता है । चतुर्थी तिथि में प्रवेश करे तो घात और मन्दवृष्टि करने वाला होता है ॥18॥
पञ्चम्यां ब्राह्मणान' सिद्धान् दीक्षितांश्चापि पीडयेत् । यवनाय धर्मभ्रष्टाय षष्ठ्यां पीडां ब्रजन्त्यत: ॥19॥
पञ्चमी तिथि में चन्द्रमा में कोई अशुभ ग्रह प्रवेश करे तो ब्राह्मण, सिद्ध और दीक्षितों को पीड़ा तथा षष्ठी तिथि में कोई अशुभ ग्रह प्रवेश करे तो धर्मरहित, यवन आदि को कष्ट होता है ॥19॥
1. मही श्रीमान् मु० । 2. ब्राह्मणं मु० ।