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भद्रबाहुसंहिता
का है। इस केतु के उदय से साढ़े चार मास तक सुभिक्ष होता है तथा छोटेबड़े सभी प्राणियों को कष्ट होता है । जिस केतु की अन्य दिशाओं में ऊंची शिखा हो तथा पिछले भाग में चिकना हो, वह जलकेतु कहलाता है । इसके उदय होने से नौ महीने तक शान्ति और सुभिक्ष रहता है । सिंह की पूंछ के समान दक्षिणावर्त शिखा-वाला, स्निग्ध, सूक्ष्मतारा युक्त पूर्व दिशा में रात में दिखलायी देने वाला भवकेतु है । यह भवकेतु जितने मुहूर्त तक दिखलायी देता है, उतने मास तक सुभिक्ष होता है । यदि रूक्ष होता है, तब मरणान्त कराने वाला माना जाता है । फुव्वारे के समान किरण वाला, मृणाल के समान गौरवर्ण केतु पश्चिम दिशा में रात भर दिखलायी दे तो सात वर्ष तक हर्ष सहित सुभिक्ष होता है। जो केतुं आधी रात के समय तक शिखासव्य, अरुण की-सी कान्तिवाला, चिकना दिखलायी देता है, उसे आवर्त कहते हैं । यह केतु जितने क्षण तक दिखलायी देता है उतने मास तक सुभिक्ष रहता है। जो धूम्र या ताम्रवर्ण की शिखा वाला भयंकर है और आकाश के तीन भाग तक को आक्रमण करता हुआ शूल के अग्र भाग के समान आकार वाला होकर सन्ध्याकाल में पश्चिम की ओर दिखलायी दे उसे संवर्त केतु कहते हैं। यह केतु जितने मुहुर्त तक दिखलायी देता है, उतने वर्ष तक शस्त्राघात से जनता को कष्ट होता है । इस केतु के उदय काल में जिसका जन्म-नक्षत्र आक्रान्त रहता है, उसे भी कष्ट होता है। जिस-जिस नक्षत्र को केतु आधुमित करे या स्पर्श करे, उस-उस नक्षत्र वाले देश और व्यक्तियों को पीड़ा होती है। यदि केतु की शिखा उल्का से भेदित हो तो शुभफल, सुवृष्टि एवं सुभिक्ष होता है ।
केतुओं का विशेष फल ___ जलकेतु पश्चिमान शिखा वाला होता है । स्निग्ध केतु के अस्त होने में जब नौ महीने समय शेष रह जाता है, तब यह पश्चिम में उदय होता है । यह नौ महीने तक सुभिक्ष, क्षेम और आरोग्य करता है तथा अन्य ग्रहों के सब दोषों को नष्ट करता है।
मिशीतकेतु-जलकेतु के कर्मान्त गति में आगे 18 वर्ष और 14 वर्ष के अन्तर पर ये केतु उदय होते हैं । कमि, शंख, हिम, रक्त, कुक्षि, काम, विसर्पण और शीत ये आठ अमृत से पैदा हुए सहज केतु हैं । इनके उदय होने से सुभिक्ष और क्षेम होता है।
भटकेतु और भवकेतु-ऊमि आदि शीत पर्यन्त के आठ केतुओं के चार के समाप्त हो जाने पर तारा के रूप एक रात में भटकेतु दिखायी देता है । यह भटकेतु पूर्व दिशा में दाहिनी ओर घूमी हुई बन्दर की पूंछ की तरह शिखा वाला, स्निग्ध और कृत्तिका के गुच्छे की तरह मुख्य तारा के प्रमाण का होता है । यह जितने मुहूर्त तक स्निग्ध दीखता रहता है उतने महीनों तक सुभिक्ष करता है । रूक्ष होगा