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विंशतितमोऽध्यायः
पूर्वं दिशि तु यदा हत्वा राहुः निष्क्रमते शशी । रूक्षों वा होनरश्मिर्वा पूर्वो राजा विनश्यति ॥53॥
जब राहु पूर्व दिशा में चन्द्रमा का भेदन कर निकले और चन्द्रमा रूक्ष तथा होन किरण मालूम पड़े तो पूर्व देश के राजा का विनाश होता है |53|| दक्षिणाभेदने गर्भं दाक्षिणात्यांश्च पीडयेत् । उत्तराभेदने चैव नाविकांश्च जिघांसति ॥54॥
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दक्षिण दिशा में गर्भ के भेदन होने से दाक्षिणात्य- - दक्षिण निवासियों को कष्ट और उत्तर गर्भ का भेदन होने से नाविको का घात होता है |54|
निश्चल: सुप्रभः कान्तो यदा निर्याति चन्द्रमाः । राज्ञां विजय-लाभाय तदा ज्ञेयः शिवशंकरः ||55||
निश्चल और सुन्दर कान्ति वाला चन्द्रमा जब चन्द्रग्रहण से निकलता है तो राजाओं को जयलाभ और राष्ट्र में सर्वशान्ति होती है ||55||
एतान्येव तु लिंगानि चन्द्र । ज्ञेयानि धीमता । कृष्णपक्षे यदा चन्द्रः शुभो वा यदि वाऽशुभः ॥56॥
उपर्युक्त चिह्नों को चन्द्रमा में अवगत कर बुद्धिमान् व्यक्तियों को शुभाशुभ जानना चाहिए । जब चन्द्रमा कृष्ण पक्ष में शुभ या अशुभ होता है तो उसके अनुसार फल घटित होता है |56||
उत्पाताश्च निमित्तानि शकुनं लक्षणानि च । पर्वकाले यदा सन्ति तदा राहो वागमः ॥57॥
जब पूर्व काल में उत्पात, निमित्त, शकुन और लक्षण घटित होते हैं, तब निश्चय से राहु का आगमन - राहु द्वारा ग्रहण होता है 1157||
रक्तो राहुः शशी सूर्यो हन्युः क्षत्रान् सितो द्विजान् । पीतो वैश्यान् कृष्णः शूद्रान् द्विवर्णास्तु जिघांसति ॥58॥
जब लाल रंग के राहु, सूर्य और चन्द्रमा हों तो क्षत्रियों का हनन, श्वेत वर्ण के होने पर द्विजों का हनन, पीत वर्ण के होने पर वैश्यों का हनन और कृष्ण वर्ण के हो पर शूद्र और वर्णसंकरों का हनन होता है |58 ।।
चन्द्रमा: पीडितों हन्ति नक्षत्रं यस्य यद्यतः । रूक्षः पापनिमित्तश्च विकृतश्च विनिर्गतः ॥59u 1. सूर्ये मु० । 2 तमः मृ० ।