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भद्रबाहुसंहिता उक्त प्रकार के मंगल के फलस्वरूप सौराष्ट्र, सिन्धु, सौवीर, द्राविड़, पांचाल, सौरसेन, बाह्लीक, नकुल, मेखला, आवन्ति, पहाड़ीप्रदेशवासियों और राजाओं का विनाश होता है और ब्राह्मण-क्षत्रियों का विरोध होता है ।।28-2911
मैत्रादीनि च सप्तव यदा सेवेत लोहितः । वक्रेण 'पापगत्या वा महतामनयं वदेत् ॥30॥ राजानश्च विरुध्यन्ते 'चातुर्दिश्यो विलुप्यते।
कुरु-पावालदेशानां मच्छते तद् भयानि च ॥31॥ यदि मंगल अनुराधा आदि सात नक्षत्रों का भोग करे अथवा वक्रगति हो पापगति से विचरण करे तो अत्यन्त अनीति होती है । राजाओं में युद्ध होता है, चारों वर्ण लुप्त हो जाते हैं; कुरु-पंचाल देशों में भय और मूर्छा रहती है ।। 30-31॥
धनिष्ठादीनि सप्तव यदा वक्रेण लोहितः । सेवेत ऋजगत्या वा तदाऽपि स जूगुप्सितः ॥32॥ धनिनो जलविप्रांश्च तथा चैव हयान् गजान् ।
उदीच्यान् नाविकांश्चापि पीडयेल्लोहितस्तदा ॥33॥ यदि मंगल वक्र गति से धनिष्ठा आदि सात नक्षत्रों का भोग करे अथवा ऋजुगति से गमन करे तो वह निन्दित होता है । धनिक, जलजन्तु, घोड़ा, हाथी, उत्तर के निवासी और नाविकों को पीड़ा देता है ।। 32-33॥
भौमो वक्रेण युद्ध वामवीथीं चरते हि 'त: ।
तेषां भयं विजानीयाद् येषां ते प्रतिपुद्गलाः ॥34॥ जब मंगल वक्र होकर युद्ध में वाम वीथि में गमन करता है तो जनता के लिए भय होता है ।।3410
क्रूर: क्रुद्धश्च ब्रह्मघ्नो यदि तिष्ठेद् ग्रहैः सह। परचक्रागमं विन्द्यात् तासु नक्षत्रवीथिषु ॥35॥ धान्यं तथा न विक्रेयं संश्रयेच्च बलीयसम् ।
चिनुयात्तुषधान्यानि दुर्गाणि च समाश्रयेत् ॥36॥ क्रूर, क्रुद्ध और ब्रह्मघाती होकर मंगल यदि अन्य ग्रहों के साथ उन नक्षत्र
1. वाऽपगत्या मुः। 2. चातुर्वर्णो मु० । 3. मूच्र्छति च मु० । 4. क्रुद्धगत्या मु० । 5. -जीवांश्च मु० । 6. वा यां मु० । 7. सः मु० ।