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अष्टादशोऽध्यायः
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होता है। बंगाल, आसाम, बिहार, बम्बई, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, में सुभिक्ष, काश्मीर में अन्न कष्ट, राजस्थान में दुष्काल, वर्षा का अभाव एवं राजनीतिक उथल-पुथल समस्त देश में होती है। जापान में चावल की कमी हो जाती है। रूस और अमेरिका में खाद्यान्न की प्रचुरता रहने पर भी अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं । उत्तर फाल्गुनी, कृत्तिका, उत्तराभाद्रपद और भरणी नक्षत्र में बुध का उदय हो या बुध विचरण कर रहा हो तो प्राणियों को अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के साथ, धान्य भाव सस्ता, उचित परिमाण में वर्षा, सुभिक्ष, व्यापारियों को लाभ, चोरों का अधिक उपद्रव एवं विदेशों के साथ सहानुभूति-पूर्ण सम्पर्क स्थापित होता है। पंजाब, दिल्ली और राजस्थान राज्यों की सरकारों में परिवर्तन भी उक्त बुध की स्थिति में होता है । घी, गुड़, सुवर्ण, चांदी तथा अन्य खनिज पदार्थों का मूल्य बढ़ जाता है । उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में बुध का विचरण करना देश के सभी वर्गों और हिस्सों के लिए सुभिक्षप्रद होता है । द्विजों को अनेक प्रकार के लाभ और सम्मान प्राप्त होते हैं । निम्न श्रेणी के व्यक्तियों को भी अधिकार मिलते हैं तथा सारी जनता सुख-शान्ति के साथ निवास करती है। यदि बुध अश्विनी, शतभिषा, मूल और रेवती नक्षत्र का भेदन करे तो जल-जन्तु, जल से आजीविका करने वाले, वैद्य-डॉक्टर एवं जल से उत्पन्न पदार्थों में नाना प्रकार के उपद्रव होते हैं। पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद इन तीन नक्षत्रों में से किसी एक में शुक्र विचरण करे तो संसार को अन्न की कमी होती है। रोग, तस्कर, शस्त्र, अग्नि आदि का भय और आतंक व्याप्त रहता है । विज्ञान नये-नये पदार्थों की शोध और खोज करता है, जिससे अनेक प्रकार की नयी बातों पर प्रकाश पड़ता है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में बुध का उदय होने से अनेक राष्ट्रों में संघर्ष होता है तथा वैमनस्य उत्पन्न हो जाने से अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति परिवर्तित हो जाती है । उक्त नक्षत्र में बुध का उदय और विचरण करना दोनों ही राजस्थान, मध्यभारत और सौराष्ट्र के लिए हानिकारक है । इन प्रदेशों में वृष्टि का अवरोध होता है। भाद्रपद और आश्विन मास में साधारण वर्षा होती है । कार्तिक मास के आरम्भ में गुजरात और बम्बई क्षेत्र में वर्षा अच्छी होती है। राजस्थान के मन्त्रिमण्डल में परिवर्तन भी उक्त ग्रह स्थिति के कारण होता है।
पराशर के मतानसार बध का फलादेश-पराशर ने बध की सात प्रकार की गतियां बतलाई हैं—प्राकृत, विमिश्र, संक्षिप्त, तीक्ष्ण, योगान्त, घोर और पाप । स्वाति, भरणी, रोहिणी और कृत्तिका नक्षत्र में बुध स्थित हो तो इस गति को प्राकृत कहते हैं । बुध की यह गति 40 दिन तक रहती है, इसमें आरोग्य, वृष्टि, धान्य की वृद्धि और मंगल होता है । प्राकृत गति भारत के पूर्व प्रदेशों के लिए उत्तम होती है। इस गति में गमन करने पर बुध बुद्धिजीवियों के लिए उत्तम होता है। कला-कौशल की भी वृद्धि होती है। देश में नवीन कल-कारखाने