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भद्रबाहुसंहिता
चारेण विति मासानष्टौ वक्रेण लोहितः।
चतुरस्तु प्रवासेन समाचारेण गच्छति ॥2॥ मंगल का चार बीस महीने, वक्र आठ महीने और प्रवास चार महीने का होता है ॥2॥
अनुजुः परुष: श्यामो ज्वलितो धूमवान् शिखी।
विवर्णो वामगो व्यस्तः क्रुद्धो ज्ञेयस्तदाशुभ: ॥3॥ वक्र, कठोर, श्याम, ज्वलित, धूमवान, विवर्ण, क्रुद्ध और बायीं ओर गमन करने वाला मंगल (सदा) अशुभ होता है ।।3।।
यदाऽष्टौ सप्त मासान् वा दीप्त: पुष्ट: प्रजापतिः ।
तदा सृजति कल्याणं शस्त्रमूर्छा तु निदिशेत् ॥4॥ यदि प्रजापति-मंगल आठ या सात महीने तक दीप्त और पुष्ट होकर निवास करे तो कल्याण होता है तथा शस्त्रमोह उत्पन्न होता है ।।4।।
मन्ददीप्तश्च दृश्येत् यदा भौमो चलेत्तदा।
तदा नानाविधं दुःखं प्रजानामहितं सजेत् ॥5॥ जब मंगल मन्द और दीप्त दिखलाई पड़े, चंचल हो, उस समय प्रजा के लिए नाना प्रकार के दुःख और अहित करता है ।।5।।
ताम्रो दक्षिणकाष्ठस्थः प्रशस्तो दस्युनाशनः ।
ताम्रो यदोत्तरे काष्ठे तस्य दस्योस्तदा हितम् ॥6॥ यदि ताम्र वर्ण का मंगल दक्षिण दिशा में हो तो शुभ होता है, और चोरों का नाश करनेवाला होता है । यदि ताम्र वर्ण का मंगल उत्तर दिशा में हो तो चोरों का हित करनेवाले होता है ।।6।।
रोहिणी स्यात् परिक्रम्य लोहितो दक्षिणं व्रजेत् ।
सुरासुराणां जानानां सर्वेषामभयं वदेत् ॥7॥ यदि रोहिणी की परिक्रमा करके मंगल दक्षिण दिशा की ओर चला जाय तो देव-दानव, मनुष्य सभी को अभय की प्राप्ति होती है ।17।
क्षत्रियाणां विषादश्च दस्यूनां शस्त्रविभ्रमः । गावो गोष्ठ-समुद्राश्च विनश्यन्ति विचेतसः ॥8॥
1. सदा मु० । 2. न तेज वान् मु० । 3. मार्गाणां मु० ।