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सप्तदशोऽध्यायः
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सुभिक्ष, अधिक वर्षा और प्रजा आमोद-प्रमोद में लीन रहती है। तुला राशि के गुरु के वक्री होने से बर्तन, सुगन्धित वस्तुएँ, कपास आदि पदार्थ महंगे होते हैं। वृश्चिक राशि का गुरु वक्री हो तो अन्न और धान्य का संग्रह करना उचित होता है। गेहूँ, चना आदि महँगे होते हैं । धनु राशि का गुरु वक्री हो तो सभी प्रकार के अनाज सस्ते होते हैं । मकर राशि के गुरु के वक्री होने से धान्य सस्ता होता है और आरोग्यता की वृद्धि होती है। यदि कुम्भ राशि का गुरु वक्री हो तो सुभिक्ष, कल्याण, उचित वर्षा एवं धान्य भाव सम रहता है। वर्षान्त में वस्तुओं के भाव कुछ महँगे होते हैं। मीन राशि का गुरु वक्री हो तो धनक्षय, चोरों से भय, प्रशासकों में अनबन, धान्य और रस पदार्थ महंगे होते हैं । लवण, कपास, घी और तेल में चौगुना लाभ होता है। मीन के गुरु का वक्री होना धातुओं के भावों में भी तेजी लाता है तथा सुवर्णादि सभी धातुएं महंगी होती हैं। ___ गुरु का नक्षत्र भोग विचार-जब गुरु कृत्तिका, रोहिणी नक्षत्र में स्थित हो उस समय मध्यम वृष्टि और मध्यम धान्य उपजता है। मृगशिरा और आर्द्रा में गुरु के रहने से यथेष्ट वर्षा, सुभिक्ष और धन-धान्य की वृद्धि होती है । पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा में गुरु हो तो अनावृष्टि, घोरभय, दुभिक्ष, लूट-पाट, संघर्ष और अनेक प्रकार के रोग होते हैं। मघा और पूर्वाफाल्गुनी में गुरु के होने से सुभिक्ष, क्षेम और आरोग्य होते हैं। उत्तराफाल्गुनी और हस्त में गुरु स्थित हो तो वर्षा अच्छी, जनता को सुख एवं सर्वत्र क्षेम-आरोग्य व्याप्त रहता है। चित्रा और स्वाती नक्षत्र में गुरु हो तो श्रेष्ठ धान्य, उत्तम वर्षा तथा जनता में आमोद-प्रमोद होते हैं। विशाखा और अनुराधा में गुरु के होने से मध्यम वर्षा होती है और फसल भी मध्यम ही होती है। ज्येष्ठा और मूल में गुरु हो तो दो महीने के उपरान्त खण्डवृष्टि होती है। पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा में गुरु हो तो तीन महीनों तक लगातार अच्छी वर्षा, क्षेम, आरोग्य और पृथ्वी पर सुभिक्ष होता है। श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा नक्षत्र में गुरु हो तो सुभिक्ष के साथ धान्य महंगा होता है। पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद में गुरु का होना अनावृष्टि का सूचक है। रेवती, भरणी और अश्विनी नक्षत्र में गुरु के होने से सुभिक्ष, धान्य की अधिक उत्पत्ति एवं शान्ति रहती है। मृगशिरा से पाँच नक्षत्रों में गुरु शुभ होता है । गुरु तीव्र गति हो और शनि वक्री हो तो विश्व में हाहाकार होने लगता है।
गुरु के उदय का फलादेश -मेष राशि में गुरु का उदय हो तो दुभिक्ष, मरण, संकट, आकस्मिक दुर्घटनाएं होती हैं। वृष में उदय होने से सुभिक्ष, मणि-रत्न महंगे होते हैं । मिथुन में उदय होने से वेश्याओं को कष्ट, कलाकार और व्यापारियों को भी पीड़ा होती है। कर्क में उदय होने से अल्पवृष्टि, मृत्यु एवं धान्य भाव तेज होता है । सिंह में उदय होने से समयानुकूल यथेष्ट वर्षा, सुभिक्ष एवं नदियों की बाढ़ से जन-साधारण में कष्ट होता है। कन्या राशि में गुरु के उदय होने से