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भद्रबाहुसंहिता विनाश करता है तथा वाम ओर से गमन करने वाला शुक्र भयंकर रोग उत्पन्न करता है ।।14311
यदा भाद्रपदा सेवेत् धूर्तान् दूतांश्च हिंसति ।
मलयान्मालवान् हन्ति मर्दनारोहणे तथा ॥144॥ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में स्थित शुक्र धूर्त और दूतों की हिंसा करता है तथा मर्दन और आरोहण करने वाला शुक्र मलय और मालवानों की हिंसा करता है ॥144।।
दूतोपजीविनो वैद्यान् दक्षिणस्थ: प्रहिंसति।
वामग: स्थविरान् हन्ति भद्रबाहुवचो यथा॥145॥ दक्षिस्थ शुक्र दौत्य कार्य द्वारा आजीविका करने वालों और वैद्यों का घात करता है तथा वामस्थ शुक्र स्थविरों की हिंसा करता है, ऐसा भद्रवाहु स्वामी का वचन है ।।1451
उत्तरां तु यदा सेवेज्जलजान् हिंसते सदा।
वत्सान वाह्लीकगान्धारानारोहणप्रमर्दने ॥146॥ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थित शुक्र जलज-जलनिवासी और जल में उत्पन्न प्राणियों का घात करता है । इस नक्षत्र में आरोहण और प्रमर्दन करने वाला शुक्र वत्स्य, बालीक और गान्धार देशों का विनाश करता है ।।146।।
दक्षिणे स्थावरान् हन्ति वामगः स्याद् भयंकरः ।
'मध्यगः सुप्रसन्नश्च भार्गव: सुखमावहेत् ॥147 दक्षिणस्थ शुक्र स्थावरों का विनाश करना है और वामग शुक्र भयंकर होता है । मध्यग शुक्र प्रसन्नता और सुख प्रदान करता है ।।147॥
भयान्तिकं नागराणां नागरांश्चोपहिसति ।
भार्गवो रेवतीप्राप्तो दुःप्रभश्च कृशो यदा ॥148॥ रेवती नक्षत्र को प्राप्त होने वाला शुक नागरिक और नगरों के लिए भय और आतंक करने वाला है ।148॥
मर्दनारोहणे हन्ति नाविकानथ नागरान् ।
दक्षिणो गोपकान् हन्ति चोत्तरो' भूषणानि तु ॥149॥ रेवती नक्षत्र को मर्दन और आरोहण करने वाला शुक्र नाविक और नागरिकों की हिंसा करता है । दक्षिणस्थ शुक्र गोपों का घात करता है और उत्तरस्थ भूषणों का विनाश करता है ।।149॥
1. मध्यमः मु० । 2. उत्तरे मु० ।