________________
पंचदशोऽध्याय
299 अतोऽस्य येऽन्यथाभावा विपरीता भयावहाः।
शुक्रस्य भयदो। लोके कृष्णे नक्षत्रमण्डले ॥227॥ उपर्युक्त प्रतिपादित वर्णों से यदि विपरीत वर्ण शुक्र का दिखलाई पड़े तो भयप्रद होता है। शुक्र का कृष्णनक्षत्र मण्डल में प्रवेश करना अत्यन्त भयप्रद है। अर्थात् जिस ऋतु में शुक्र का जो वर्ण बतलाया गया है, उससे विपरीत वर्ण का दिखलाई पड़ना अशुभ फल-सूचक होता है ।।227॥
पूर्वोदये फलं यत् तु पच्यतेऽपरतस्तु तत् ।
शुक्रस्यापरतो यत्तु पच्यते पूर्वत: फलम् ॥228॥ शुक्र के पूर्वोदय का जो फल है वही पश्चिमोदय में घटित होता है तथा शुक्र के पश्चिमोदय का जो फल है, वही पूर्वोदय में भी घटित होता है ।।228।।
एवमेवं विजानीयात फल-पाको समाहितः।
कालातीतं यदा कुर्यात् तदा घोरं समादिशेत् ॥229॥ इस प्रकार शुक्र के फलादेश को समझ लेना चाहिए। जब शुक्र के उदय में कालातीत हो-विलम्ब हो तो अत्यन्त कष्ट होता है ।।229॥
सवक्रचारं यो वेत्ति शुक्रचारं स बुद्धिमान् ।
श्रमण: स सुखं याति क्षिप्रं देशमपीडितम् ।।230॥ जोश्रमण-मुनि शुक्र के चार, वक्र, उदय, अतिचार आदि को जानता है, वह बुद्धिमान् अपीड़ित देश में विहार कर शीघ्र ही सुख प्राप्त करता है ।।2301
यदाऽग्निवर्णो रविसंस्थितो वा वैश्वानरं मार्गसमाश्रितश्च। तदाभयं शंसति सोऽग्नि जातं तज्जातजं साधयितव्यमन्यतः॥231॥
जब शक्र अग्निवर्ण हो अथवा सूर्य के अंश-कला पर स्थित हो अथवा वैश्वानर वीथि में स्थित हो तो अग्नि का भय रहता है तथा अग्नि से उत्पन्न अन्य प्रकार के उपद्रवों की भी सम्भावना रहती है ।231॥ इति सकलमुनिजनानन्दकन्दोदयमहामुनिश्रीभद्रबाहुविरचिते महानिमित्त
शास्त्रे भगवत्रिलोकपतिवैत्यगुरोः शुक्रस्य चारः समाप्तः ।।15।।
विवेचन-शुक्रोदय विचार -शुक्र का अश्विनी, मृगशिर, रेवती, हस्त, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण और स्वाति नक्षत्र में उदय होने से सिन्ध, गुर्जर,
1. चतुरो मु० । 2. -श्रितस्य० मु० । 3. -ऽपि A. I