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भद्रबाहुसंहिता
मण्डल, आर्द्रा से आश्लेषा तक द्वितीय मण्डल और मघा से चित्रा नक्षत्र तक तृतीय मण्डल होता है। तृतीय मण्डल में शुक्र का उदय और अस्त हो तो वृक्षों का विनाश, शवर-शूद्र, पुण्ड, द्रविड, शूद्र, वनवासी, शूलिक का विनाश तथा इनको अपार कष्ट होता है । शुक्र का चौथा मण्डल स्वाति, विशाखा और अनुराधा इन नक्षत्रों में होता है। इस चतुर्थ मण्डल में शुक्र के गमन करने से ब्राह्मणादि वर्गों को विपुल धन लाभ, यश लाभ और धन-जन की प्राप्ति होती है। चौथे मण्डल में शुक्र का अस्त होना या उदय होना सभी प्राणियों के लिए सुखदायक है । यदि चौथे मण्डल में किसी क्रूर ग्रह द्वारा आक्रान्त हो तो इक्ष्वाकुवंशी, आवन्ती के नागरिक, शूरसेन देश के वासी लोगों को अपार कष्ट होता है। यदि इस मण्डल में ग्रहों का युद्ध हो, शुक्र क्रूर ग्रहों द्वारा परास्त हो जाय तो विश्व में भय और आतंक व्याप्त हो जाता है। अनेक प्रकार की महामारियाँ, जनता में क्षोभ, असन्तोष एवं अनेक प्रकार के संघर्ष होते हैं । ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ः और श्रवण इन पाँच नक्षत्रों का पांचवाँ मण्डल होता है । इस पंचम मण्डल में शुक्र के गमन करने से क्षुधा, चोर, रोग, आदि की बाधाएं होती हैं। यदि क्रूर ग्रहों द्वारा पंचम मण्डल आक्रान्त हो तो काश्मीर, अश्मक, मत्स्य, चारुदेवी और अवन्ती देश वाले व्यक्तियों के साथ आभीर जाति, द्रविड़, अम्बष्ठ, त्रिगर्त्त, सौराष्ट्र, सिन्धु और सौवीर देशवासियों का विनाश होता है। क्रूराकान्त या क्रूरग्रहाविष्ट शुक्र इस पंचम मण्डल में रहने से जनता में असन्तोष, घृणा, मात्सर्य और नाना प्रकार के कष्ट उत्पन्न करता है । धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्विनी इन छ: नक्षत्रों का छठा मण्डल है। यदि क्रूर ग्रह इस मण्डल में निवास करता हो और उसके साथ शुक्र भी संगम करे तो प्रजा को आर्थिक कष्ट रहता है । छठे मण्डल में शुक्र का युद्ध यदि किसी शुभ ग्रह के साथ हो तो धनधान्य की समृद्धि; क्रूर ग्रह के साथ हो तो धन-धान्य का अभाव तथा एक शुभ ग्रह
और एक क्रूर ग्रह हो तो जनता को साधारणतया सुख प्राप्त होता है। वर्षा समयानुसार होती है, जिससे अच्छी फसल उत्पन्न होती है । शस्त्रघात और चौरघात का कष्ट होता है ! छठे मण्डल में शुक्र शुभ ग्रह का सहयोगी होकर अस्त हो तो प्रजा में शान्ति और सुख का संचार होता है।
इन छ: मण्डलों में शुक्र-गमन का निरूपण किया गया है। स्वाति और ज्येष्ठा नक्षत्र वाले मण्डल पश्चिम दिशा में होने से शुभफल होता है। मघादि नक्षत्र वाला मण्डल पूर्व दिशा में हो तो अत्यन्त भय होता है। कृत्ति का नक्षत्र को भेद कर शुक्र गमन करे तो नदियों में बाढ़ आती है, जिससे नदीतटवासियों को महान् कष्ट होता है। रोहिणी नक्षत्र का शुक्र भेदन करे तो महामारी पड़ती है। मृगशिरा नक्षत्र का भेदन करे तो जल या धान्य का नाश, आर्द्रा नक्षत्र का भेदन करने से कौशल और कलिंग का विनाश होता है, पर वृष्टि अत्यधिक होती है और