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सप्तदशोऽध्यायः
वर्ण गति च संस्थानं मार्गमस्तमनोदयौ।
1वकं फलं प्रवक्ष्यामि गौतमस्य निबोधत ॥1॥ बृहस्पति के वर्ण, गति, आकार, मार्गी, अस्त, उदय, वक्र आदि का फलादेश भगवान् गौतम स्वामी द्वारा प्रतिपादित आधार पर निरूपित किया जाता है॥1॥
मेचकः कपिलः श्याम: पीतः मण्डल-नीलवान् ।
रक्तश्च धम्रवर्णश्च न प्रशस्तोऽङि गरास्तदा ॥2॥ बृहस्पति का मेचक, कपिल-पिंगल, श्याम, पीत, नील, रक्त और धूम्र वर्ण का मण्डल शुभ नहीं है ।।2।।
मेचकश्चेन्मतं सर्वं वस पाण्डविनाशयेत् ।
पीतो व्याधि भयं शिष्टे धूम्राभ: 'सृजते जलम् ॥3॥ यदि बृहस्पति का मण्डल मेचक वर्ण का हो तो मृत्यु, पाण्डु वर्ण का हो तो धन-नाश, पीतवर्ण का हो तो व्याधि और धूम्र वर्ण का होने पर जल-वृष्टि होती है ।।3।।
उपसर्पति मित्रादि पुरत: स्त्री प्रपद्यते ।
त्रि-चतुर्भिश्च नक्षत्र स्त्रिभिरस्तमनं व्रजेत् ॥4॥ जब बृहस्पति तीन-चार नक्षत्रों के बीच गमन करता है या तीन नक्षत्रों में अस्त को प्राप्त होता है तो स्त्री-पुत्र और मित्रादि की प्राप्ति होती है ॥4॥
कृत्तिकादि भगान्तश्च मार्गः स्यादुत्तरः स्मृतः ॥
अर्यमादिरपाप्यन्तो मध्यमो मार्ग उच्यते ॥5॥ कृत्तिका से पूर्वाफाल्गुनी तक-कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा और पूर्वाफाल्गुनी इन नौ नक्षत्रों में बृहस्पति का उत्तर मार्ग तथा उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल और पूर्वाषाढ़ा इन नौ नक्षत्रों में उसका मध्यम मार्ग होता है ।।5।।
विश्वादिसमयान्तश्च दक्षिणो मार्ग उच्यते। एते बहस्पतेर्माई नव नक्षत्रजास्त्रयः ॥6॥
1. गौतमस्य प्रवक्ष्यामि यथावदनुपूर्वश: मु०। 2. पाण्डु स मु० । 3. धूम्राभश्च सुजेज्ज लम् मु० ।