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पंचदशोऽध्यायः
285 क्षत्रियों के लिए मृत्यु एवं बायीं ओर से जब गमन करता है तो ब्राह्मणों के लिए भयंकर होता है ।।137।।
सौरसेनांश्च मत्स्यांश्च श्रवणस्थ: प्रपीडयेत् ।
वंगांगमगधान् हन्यादारोहणप्रमर्दने ॥138॥ यदि शुक्र श्रवण नक्षत्र में स्थित हो तो सौरसेन और मत्स्य देश को पीड़ित करता है । श्रवण नक्षत्र में आरोहण और प्रमर्दन करने से शुक्र वंग, अंग और मगध का विनाश करता है ॥138।।
दक्षिणः श्रवणं गच्छेद् द्रोणमेचं निवेदयेत् ।
वामगस्तपघाताय नणां च प्राणिनां तथा ॥1391 यदि दक्षिण की ओर से शुक्र श्रवण नक्षत्र में जाय तो एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा होती है और बायीं ओर से गमन करे तो मनुष्य और पशुओं के लिए घातक होता है ॥139॥
धनिष्ठास्थो धनं हन्ति समृद्धांश्च कुटुम्बिन: ।
पाञ्चालान् सूरसेनांश्च मत्स्यानारोहमर्दने ॥140॥ यदि धनिष्ठा नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो समृद्धशाली, धनिक कुटुम्बियों के धन का अपहरण करता है। धनिष्ठा नक्षत्र के आरोहण और मर्दन करने पर शुक्र पाञ्चाल, सूरसेन और मत्स्य देश का विनाश करता है 1140॥
दक्षिणो धनिनो हन्ति वामगो व्याधिकृद् भवेत् ।
मध्यग: सुप्रसन्नश्च सम्प्रशस्यति भार्गव: ॥141॥ दक्षिण की ओर गमन करने वाला शुक्र धनिकों का विनाश और बायीं ओर से गमन करने वाला शुक्र व्याधि करने वाला होता है। मध्य से गमन करने वाला शुक्र उत्तम होता है तथा सुख और शान्ति की वृद्धि करता है ॥141॥
शलाकिनः शिलाकृतान् वारुणस्थः प्रहिंसति ।
कालकूटान् कुनाटांश्च हन्यावारोहमर्दने ॥142॥ शतभिषा नक्षत्र में स्थित शुक्र शलाकी और शिलाकृतों की हिंसा करता है। इस नक्षत्र में आरोहण और मर्दन करने वाला शुक्र कालकूट और कुनाटों की हिंसा करता है ।।142॥
दक्षिणो नीचकर्माणि हिंसते नीचकर्मिण:।
वामगो दारुणं व्याधि ततः सृजति भार्गव: ॥143॥ दक्षिण से गमन करने वाला शुक्र नीच कार्य और नीच कार्य करने वालों का