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भद्रबाहुसंहिता
अनुलोमो विजयं ब्रूते प्रतिलोमः पराजयम् । उदयास्तमने शुको बुधश्च कुरुते तथा || 169॥
शुक्र और बुध अनुलोम उदय, अस्त को प्राप्त होने पर विजय करते हैं और प्रतिलोम उदय, अस्त को प्राप्त होने पर पराजय ||169 ॥
मार्गमेकं समाश्रित्य सुभिक्षक्षेमदस्तथा ।
उशना दिशतितरां सानुलोमो न संशयः ॥170u
शुक्र सीधी दिशा में एक-सा ही गमन करता है तो निस्सन्देह सुभिक्ष और कल्याण देता है । 170 ।।
यस्य देशस्य नक्षत्रं शुको हन्याद्विकारगः । तस्मात् भयं परं विन्द्याच्चतुर्मासं न चापरम् ॥171॥
विकृत होकर शुक्र जिस देश के नक्षत्र का घात करता है, उस देश को, उस घातित होने वाले दिन से चार महीने तक भय होता है, अन्य कोई दुर्घटना नहीं घटती है ।।171।।
शुक्रोदये ग्रहो याति प्रवासं यदि कश्चन । क्षेमं सुभिक्षमाचष्टे सर्व वर्षसमस्तदा ।। 1720
शुक्र के उदय होने पर यदि कोई ग्रह अस्त हो जाय तो सुभिक्ष, कल्याण और समयानुकूल यथेप्ट वर्षा होती है तथा वर्ष भर एक-सा आनन्द रहता है ।1172।। बलक्षोभो भत्रेच्छ्यामे मृत्युः कपिलकृष्णयोः ।
नोले गवां च मरणं रूक्षे वृष्टिक्षय: क्षुधा ॥173॥
यदि शुक्र श्यामवर्ण का हो तो बल क्षुब्ध होता है । पिंगल और कृष्ण वर्ण का शुक्र हो तो मृत्यु, नीलवर्ण का होने पर गायों का मरण और रूक्ष होने पर वर्षा का नाश तथा क्षुधा की वेदना का सूचक होता है ।। 173 ।।
वाताक्षिरोगो माञ्जिष्ठे पीते शुक्रे ज्वरो भवेत् । कृष्णे विचित्रे वर्णे च क्षयं लोकस्य निर्दिशेत् ॥174॥
शुक्र के मंजिष्ठ वर्ण होने पर वात और अक्षिरोग, पीतवर्ण होने पर ज्वर और विचित्र कृष्ण वर्ण होने पर लोक का क्षय होता है ||174||
1. तेषां विजयमाख्याति मु० । 2 माख्याति मु० । 3. महवर्ष च तत्तथा मु० । 3. तु मु० ।