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पंचदशोऽध्यायः
मध्येन प्रज्वलन् गच्छन् विशाखामश्वजे नृपम् । उत्तरोऽवन्तिजान् हन्ति 'स्त्री राज्यस्थांश्च दक्षिणः ॥ 126 ॥
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यदि शु प्रज्वलित होता हुआ उत्तर से विशाखा और अश्विनी नक्षत्र के मध्य से गमन करता है तो अवन्ति देश में उत्पन्न व्यक्तियों का घात एवं दक्षिण से गमन करता है तो स्त्री राज्य के व्यक्तियों का विनाश करता है || 1261
अनुराधास्थितो शुक्रो यायिनः प्रस्थितान् वधेत् । मर्दते च मिथो भेदं दक्षिणे न तु वामगः ॥12॥
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अनुराधा स्थित शुक्र यायी- -- आक्रमण करने के लिए प्रस्थान करने वालों के वध का संकेत करता है । यदि अनुराधा नक्षत्र का शुक्र मर्दन करे तो परस्पर में मतभेद होता है | यह फल दक्षिण की ओर का है, बायीं ओर का नहीं ।। 127॥
मध्यदेशे तु दुर्भिक्षं जयं विन्द्यादुदये ततः । फलं प्राप्यन्ति चारेण भद्रबाहुवचो यथा ॥ 128॥
यदि अनुराधा नक्षत्र में शुक्र का उदय हो तो मध्य देश में दुर्भिक्ष और जय होती है । भद्रबाहु स्वामी का ऐसा वचन है कि शुक्र का फल उसके विचरण के अनुसार प्राप्त होता है । 128 ॥
ज्येष्ठास्थः पीडयेज्ज्येष्ठान् 'इक्ष्वाकून् गन्धमादजान् । मर्दनारोहणे व्याधि मध्यदेशे 'ततो वधेत् ॥ 129॥
ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित शुक्र इक्ष्वाकुवंश तथा गन्धमादन पर्वत पर स्थित बड़े व्यक्तियों को पीड़ि त करता है । मर्दन और आरोहण करने वाला शुक्र विनाश करता है तथा मध्य देश के मत-मतान्तरों का निराकरण करता है । 129॥ दक्षिण: क्षेमकृज्ज्ञेयो वामगस्तु भयंकरः । 'प्रसन्नवर्णो विमलः स विज्ञेयो 'सुखंकरः ॥130॥
दक्षिण की ओर से ज्येष्ठा नक्षत्र में गमन करने वाला शुक्र क्षेम करने वाला होता है और बायीं ओर से गमन करने वाला शुक्र भयंकर होता है तथा निर्मल श्रेष्ठवर्ण का शुक्र सुखकारक होता है || 1301
हन्ति मूलफलं मूले 'कन्दानि च वनस्पतिम् । औषध्योर्मलयं चापि माल्यकाष्ठोपजीविनः ॥131॥
मूल नक्षत्र में स्थित शुक्र वनस्पति के फल, मूल, कन्द, औषधि, चन्दन एवं
1. तैराज्य ० मु० । 2. इक्ष्वाकानक्षारपद्रिकान् मु० । 3 हन्ति मु० । 4. मतान् वधेत् मु० । 5. प्रशस्त मु० । 6. सुखावहः मु० । 7. कन्दानथ मु० ।